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________________ 128 पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ को जन्म दिया। पुत्र का नाम जयसेन रखा गया। माता के धर्म-संस्कारों के प्रभाव से षट्खण्ड के चक्रवर्ती पद पर होते हए भी पुत्र जयसेन ने संयम एवं तप के पालन से मोक्ष प्राप्त किया। २.२५ बाईसवें तीर्थंकर भ०. श्री अरिष्टिनेमि जी से संबंधित श्राविकाएं : २.२५.१ धारिणी देवी :- जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में अचलपुर नाम की नगरी में महाराजा विक्रमधन की महारानी का नाम धारिणी देवी था ।वह सशील गणशील सौंदर्यसंपन्न सन्नारी थी। उसने एक बार फलों से लदे हुए आम्रवृक्ष का स्वप्न देखा और यथासमय धनकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया जो बहुत होनहार था ।२६३ २.२५.२ धनवती :- धनवती कुसुमपुर के सिंह नरेश और विमला रानी की पुत्री थी। तथा अचलपुर के राजकुमार विक्रमधन की पत्नी थी। एक बार उसने मूर्छित मुनि का उपचार किया तथा मुनि से धर्मोपदेश श्रवण किया। तद् उपरान्त धनवती ने पति सहित श्राविका व्रतों को धारण किया ।२६४ कालांतर में दीक्षित हुई तथा आत्म कल्याण किया। २.२५.३ विद्यन्मति :- भरतक्षेत्र के सुरतेज नगर में चक्रवर्ती राजा शूरसेन की रानी थी। उसके पुत्र का नाम "चित्रगति" था।२६५ २.२५.४ रत्नवती :- रत्नवती वैताढ्यगिरि की दक्षिण श्रेणी में शिवमंदिर नगर के राजा अनंगसिंह की शशिप्रभा रानी की पुत्री थी। वह रूपवती, गुणवती तथा शुभ लक्षणों वाली थी।२६६ २.२५.५ यशस्वी :- यशस्वी भरतक्षेत्र के चक्रपुर नगर में सुग्रीव राजा की रानी थी। उसके पुत्र का नाम सुमित्र था।२८७ २.२५.६ भद्रा :- भद्रा भरतक्षेत्र के चक्रपुर नगर में सुग्रीव राजा की रानी थी, उसके पुत्र का नाम पदम था। उसने अपनी सौत के पुत्र सुमित्र को मारने हेतु विष दे दिया। अतः नगर भर में उसकी निंदा हुई, भर्त्सना हुई। वह राजभवन से निकलकर वन में जाकर दावानल में जलगई। रौद्रध्यानपूर्वक मरकर वह नरक में उत्पन्न हुई ।२६८ २.२५.७ प्रियदर्शना :- पूर्व विदेह के पद्म नामक विजय में सिंहपुर नगर के हरिनंदी राजा की वह पटरानी थी। उसके पुत्र का नाम 'अपराजित' था |२६६ २.२५.८ कनकमाला :- वह कोशल नरेश की पुत्री थी, उसका विवाह अपराजित कुमार के साथ संपन्न हुआ था।२७० २.२५.६ रत्नमाला :- वह वैताढ्य पर्वत पर रथनूपुर नगर के विद्याधरपति अमृतसेन की पुत्री थी, तथा राजकुमार अपराजित की पत्नी थी।७१ २.२५.१० कमलिनी और कुमुदिनी :- ये दोनों विद्याधर राजा भुवनभानु की पुत्रियाँ थी तथा राजकुमार अपराजित के साथ उनका पाणिग्रहण संस्कार हुआ था ।२७२ २.२५.११ प्रीतिमती :- प्रीतिमती जनानंद नगर के जितशत्रु राजा और धारिणी रानी की पुत्री थी। राजकुमारी की प्रतिज्ञा के अनुसार गुणों और कलाओं में श्रेष्ठ अपराजित कुमार ने राजकुमारी के प्रश्न का उत्तर दिया। अतः उत्तम गुणों वाली प्रीतिमती का विवाह योग्य वर अपराजित के साथ संपन्न हुआ।७३ २.२५.१२ श्रीमती :- जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में कुरू देश के हस्तिनापुर नगर मे श्रीसेन राजा की रानी का नाम श्रीमती था। एक रात्रि को रानी ने स्वप्न में शंख के समान निर्मल चंद्रमा को अपने मुंह में प्रवेश करते हुए देखा। अतः जन्म के बाद पुत्र का नाम शंखकुमार रखा गया।२७४ २.२५.१३ यशोमती :- अंगदेश की चम्पा नगरी के जितारी राजा और कीर्तिमती रानी की पुत्री का नाम यशोमती था। वह अनुपम सुंदरी और सद्गुणों की खान थी। वह पुरूषद्वेषिनी थी। कालांतर में शंखकुमार से आकर्षित होकर उसकी पत्नी बनी। यशोमती परम शीलवती थी।७५ २.२५.१४ सोमिला :- वह मगधदेश के नंदीग्राम के गरीब ब्राह्मण की पत्नी थी। उसके पुत्र का नाम नंदिसेन था।६ २.२५.१६ वैदर्भी :- वैदर्भी रूक्मिणी के भाई चंदेरी नरेश रूक्मी की पुत्री थी, जो अत्यधिक रूपवती, गुणवती और शीलवती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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