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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
चतुर्थ अध्याय में तीर्थकर श्री पार्श्वनाथ जी एवं तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी के काल की श्राविकाओं की संख्या एवं प्रमुख श्राविकाओं का परिचय दिया गया है। इस अध्याय में १३० श्राविकाओं का परिचय देने के साथ तीर्थंकर महावीर स्वामी के काल में नारी जाति के क्रान्तिकारी परिवर्तन की चर्चा भी की गई है।
पंचम अध्याय में महावीरोत्तरकालीन ४१ श्राविकाओं का परिचय दिया गया है जो ई.पू. तीसरी शती से ई.पू. सातवीं शती की है। इस अध्याय के लेखन में मात्र साहित्यिक स्त्रोत ही नहीं वरन् अभिलेखीय एवं पुरातात्विक आधारों को भी स्थान दिया गया है। यह अपने आप में श्राविकाओं के योगदान का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है।
षष्ठ अध्याय में ८वीं से १५र्वी शती की जैन श्राविकाओं का परिचय दिए जाने के साथ-साथ उनके द्वारा जैन धर्म को प्रदत्त अवदान की भी चर्चा है। यह काल आचार्य हरिभद्र से प्रारम्भ होकर अकबर प्रतिबोधक आचार्य हीरविजयसूरि आदि जैन आचार्यों तक का काल है। इसी काल में श्राविकाओं के द्वारा कलापूर्ण मन्दिरों, साहित्य के संरक्षण एवं प्रतिलिपियों में कृत योगदान का उल्लेख इस अध्याय की विशेषता है। अध्याय में दक्षिण भारत एवं उत्तर भारत की श्राविकाओं का उल्लेख सुंदर रीति से हुआ है।
षष्ठम अध्याय में मुगलों के पतन एवं अंग्रेजी शासनतंत्र की स्थापना तक अर्थात् १६वीं शती से १६वीं शती की श्राविकाओं एवं उनके योगदान को रेखांकित किया गया है। इस अध्याय में ५३०० श्राविकाओं का उल्लेख है तथा ११२ श्राविकाओं की सूची गई है।
सप्तम अध्याय में १८.५७ के स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात् अब तक की श्राविकाओं का उल्लेख, परिचय एवं योगदान चर्चित है। इस अध्याय में राजनीति, स्वतन्त्रता संग्राम, साहित्यिक क्षेत्र, समाज से शिक्षा, कला, तप, संलेखना आदि में कृत श्राविकाओं के योगदान का उल्लेख है ।
शोध प्रबन्ध में सारिणियों के माध्यम से श्राविकाओं के द्वारा कृत कार्यों का उल्लेख किया गया है। विशेषतः मूर्ति स्थापना अथवा मन्दिर निर्माण के सम्बन्ध में ये सारिणियाँ दी गई हैं।
यह शोध कार्य श्रम सापेक्ष था, जिसे अनुसन्धात्री ने सम्पन्न कर श्राविकाओं के इतिहास का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज उपलब्ध कराया है। लेखन में सर्वत्र समीक्षात्मकता दृष्टिगोचर होती है। आठ अध्यायों में अन्वेषणात्मक एवं समालोचनात्मक दृष्टि को लिए हुए जो ऐतिहासिक सामग्री उपस्थापित की गई है वह अपने आप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। मैं अनुसन्धात्री साध्वी प्रतिभाश्री को इस शोध प्रबन्ध के आधार पर पी-एच. डी. उपाधि प्रदान किए जाने की संस्तुति करता हूँ ।
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- डॉ. धर्मचंद जैन जोधपुर
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