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________________ 126 पौराणिक /प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ २.२३.५४ पुष्पवती :- वह चन्द्रगति राजा की रानी थी। वह सुन्दर व सुशील तथा उत्तम चारित्र से संपन्न थी ।२२१ २.२३.५५ अतिसुंदरी :- वह चक्रपुर की राजकुमारी थी। वह राजकुमार कुलमंडित से आकर्षित हुई। उससे पूर्व ही पुरोहित पिंगल उसे लेकर विदग्ध नगर में आया था।२३२ २.२३.५६ वेगमती :- वेगमती विदेहा पुरोहित की पुत्री थी ।२३३ २.२३.५७ विदेहा :- वह मिथिलेश श्री जनकराजा की रानी थी। उसका पुत्र भामण्डल व पुत्री सीता थी।२३४ खोये हुए पुत्र भामंडल के मिलने पर उसका पुत्र स्नेह उमड़ पड़ा ।२३५ उसने अपनी संतान को धर्म-संस्कारों से सिंचित किया था। २.२३.५८ सुभद्रा :- सुभद्रा जनकजी के भाई कनकजी की पुत्री थी तथा लक्ष्मण के साथ उसका विवाह किया गया था।२२६ २.२३.५६ उपास्तिका :- सोनपुर नगर के भावन व्यापारी तथा उनकी पत्नी दीपिका की यह पुत्री थी। वह साधु साध्वियों से द्वेष रखती थी, अतः चिरकाल तक दुःखों को भोगती रही ।२२७ २.२३.६० सुंदरी :- सुंदरी बंगपुर के धन्य व्यापारी की पत्नी थी, उसके पुत्र का नाम वरूण था।२२८ २.२३.६१ विद्युल्लता :- वैताढ्यगिरि की उत्तर श्रेणी के शिशिपुर नगर के विद्याधर रत्नमाली की रानी थी, सूर्यजय उसका पुत्र था।२३ २.२३.६२ वनमाला :- वह विजयपुर नरेश महीधरजी की पुत्री थी। पिता महीधर जी नरेश ने बचपन में ही अपनी पुत्री को लक्ष्मण जी के प्रति आसक्त देखकर उन से संबंध जोड़ना चाहा लेकिन वनमाला ने लक्ष्मण के वनगमन की बात सुनी तो उसने आत्मघात का निश्चय किया। वह उसी उद्यान में आई जहां राम लक्ष्मण और सीता थे। लक्ष्मण ने उसको आत्मघात से बचाया। अपने आराध्य पति तथा श्री राम व सीता जी से मिलकर वनमाला अत्यंत प्रसन्न हुई।२४० २.२३.६३ रतिमाला :- रतिमाला विजय रथ की बहन तथा लक्ष्मण की पत्नी थी।४१ २.२३.६४ विजयसुंदरी :- विजयरथ की छोटी बहन तथा भरतजी की पत्नी थी।२४२ २.२३.६५ उपयोगी :- पद्मिनी नगरी में पर्वत राजा का अमृतसर दूत था, उसकी पत्नी का नाम उपयोगा था। वसुभूति में आसक्त होकर अपने पति अमृतसर की मृत्यु की निमित्त बनी थी। २४३ २.२३.६६ पद्मावती :- भरतक्षेत्र के रिष्टपुर नगर के प्रियंवद नरेश की रानी थी। रत्नरथ और चित्ररथ दोनों उनके पुत्र थे ।२४४ २.२३.६७ कनकाभा :- प्रियंवद नरेश की अन्य रानी थी उसके पुत्र का नाम अनुद्धर था।४५ २.२३.६८ श्रीप्रभा :- श्रीप्रभा रत्नरथ राजा की रानी थी।२४६ २.२३.६६ विमला :- सिद्धार्थपुर के क्षेमंकर नरेश की रानी थी। उसके दो पुत्र थे कुलभूषण और देशभूषण २०७ २.२३.७० कनकप्रभा :- विमलादेवी रानी एवं क्षेमंकर राजा की पुत्री थी तथा कुलभूषण देशभूषण की बहन थी। २.२३.७१ मैनासुंदरी :- मैनासुंदरी उज्जयिनी के राजा पुण्यपाल एवं रानी रूप सुंदरी की पुत्री थी तथा राजा श्रीपाल की रानी थी। मैनासुंदरी जैनधर्मोपासिका थी। कृत कर्मो के अनुसार ही व्यक्ति को सुख दुःख प्राप्त होता है, पिता पुत्री को सुखी अथवा दुःखी नहीं बना सकता। मैना के इन वचनों से क्रुद्ध होकर अहंकारी पिता ने कुष्टी पुरूष उम्बर राणा के साथ उसका विवाह कर दिया। मैना सुंदरी ने तन मन से पति की सेवा की तथा ज्ञानी मुनिराज के समीप आकर वंदना नमस्कार कर के दुःख से मुक्ति का उपाय पूछा। मुनि ने अशुभ कर्मों को तोड़ने का उपाय धर्म बताया। नवकार मंत्र तथा आयंबिल तप आराधना की विधि को मुनि के मुख से श्रवण कर मैना सुंदरी ने नौ दिनों की आयंबिल ओली की आराधना की, नव पद एवं आयंबिल आराधना की पवित्र साधना से उसके पति उम्बर राणा उर्फ श्रीपाल का कष्ट रोग दर हो गया। उसका शरीर कंचन सदश कांतिमय बन गया। मैना सुंदरी के माता-पिता ने मैना सुन्दरी से क्षमा मांगी। मैना के प्रभाव से वे भी जिन धर्म के श्रद्धालु भक्त बन गये । सात सौ कुष्टियों का रोग नवपद की आराधना से दूर हुआ। मैना सुंदरी व श्रीपाल का एक पुत्र था जिसका नाम त्रिभुवनपाल था। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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