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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
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कृपाचार्य के मार्गदर्शन से नग्नावस्था में माँ के समीप जा रहा था, किंतु कृष्ण के कहने से पुष्पों की मोटी सी माला से जंघा को ढ़ककर पहुंचा। पुत्र वात्सल्यवश गांधारी ने आँखों की पट्टी खोली। जंघा पर माला देखकर वह कुपित हुई, कि यही जंघा का भाग तेरे वध का कारण बनेगा |२० युद्ध के अंत में दुर्योधन दुश्शासन आदि सौ पुत्रों के मरने से वह अत्यंत व्यथित हुई२२१ उसकी पुत्री का नाम था दुशल्या।
२.२३.४५ अंजना : अंजना महेंद्रनगर के राजा महेंद्र एवं रानी मनोवेगा की पुत्री थी। आदित्युपर के राजा प्रह्लाद एवं केतुमती के पुत्र पवनंजय इसके पति थे। सखियों द्वारा मिथ्या प्रलाप करने पर अंजना के मौन से क्षब्ध होकर विवाह की रात्रि से बारह वर्ष तक पवन ने उसका त्याग कर दिया। रावण की तरफ से वरूण कुमार के विरूद्ध युद्ध में जाते हुए मार्ग में चकवा चकवी से विरह कि बातें सुनी। अपनी प्रिया अंजना सुंदरी के विरह के विचार से पवन ने पुनः लौटकर अंजना को अल्प समय का रति सुख दिया और अपना स्मृति चिन्ह देकर युद्ध के लिए तुरन्त प्रस्थान कर दिया। पीछे से गर्भवती अंजना की सास ने उसे दुराचारिणी समझकर घर से निकाल दिया। सखी बसंत माला के संग अंजना अपने पीहर चली गई। माता-पिता ने भी कुलकलंकिनी कहकर उसे रहने का स्थान नहीं दिया। भूखी प्यासी अंजना सखी के संग वन में चली गई। एक बार वन में उन्हें शुभगति एवं अमृतगति नामक दो मुनियों के दर्शन हुए। अंजना एवं सखी दोनों ने वंदना की। अंजना ने मुनि से अपने दुःख का कारण पूछा। पूर्व भव में सौतिया डाह से जिन प्रतिमा को घर के आंगन में छुपाने से यह दुःख तुम्हें प्राप्त हुआ है, अब शीघ्र ही तुम्हें सुख प्राप्त होगा, मुनियों ने अंजना को कर्मफल का स्वरूप बता दिया। यथाकाल अंजना ने शुभ लक्षणों वाले एक बालक को जन्म दिया। मामा प्रतिसूर्य ने
र्य ने अंजना को देखकर उसे अपने महल में रखा। हनुमत द्वीप में बालक का लालन, पालन हुआ, अतः उसे हनुमान नाम दिया गया। अंजना ने अपने मन को धर्म आराधन एवं श्राविका व्रतों के पालन में लगा लिया। युद्ध से लौटने पर पवनंजय को वस्तुस्थिति का बोध हुआ। उसने अंजना की खोज की। अंजना के ना मिलने पर पवनंजय ने अग्निप्रवेश का निश्चय किया। कालांतर में अंजना का पता मिलने पर सबने उससे क्षमा याचना की। अंजना ने किसी को दोष नहीं देते हुए इसे अपने अशुभ कर्मों का फल बताया। अन्त में अंजना ने दीक्षा ग्रहण करके संयम का पालन किया। अपनी अत्मा का कल्याण करके अंजना सती के नाम से विख्यात हई |२२२
२.२३.४६ सत्यवती :- वह वरूण की पुत्री थी, तथा हनुमान के साथ उसका पाणिग्रहण संस्कार हुआ था।२२३ २.२३.४७ चित्रमाला :- वह कीर्तिधर नरेश की रानी थी तथा उसके पुत्र का नाम सुकोशल था।२४ २.२३.४८ चित्रमाला :- वह राजा सुकोशल की रानी थी तथा उसके पुत्र का नाम हिरण्यगर्भ था।२२५ २.२३.४६ मगावती :- वह राजा हिरण्यगर्भ की वीरांगनी रानी थी तथा उसके पुत्र का नाम नघुष था।२२६
२.२३.५० सिंहिका :- वह नघुष नरेश की वीरांगना रानी थी। उसने राजा की अनुपस्थिति में दक्षिण पथ के शत्रुओं से वीरता पूर्वक युद्ध किया तथा अपने राज्य की सुरक्षा की। इस बात पर राजा संदेहग्रस्त हुआ। और कालांतर में राजा नघुष भयंकर रोगों से पीड़ित हो गया। रानी ने अपने सतीत्व की आन देकर राजा को जल दिया, जिसने चमत्कार(प्रभाव) दिखाया था। रानी प्रदत्त जल द्वारा प्रक्षालन करने पर राजा का रोग शांत हो गया। रानी सिंहिका के सतीत्व की जयजयकार हई। रानी के पुत्र का नाम सोदासकुमार था|२२०
२.२३.५१ पृथ्वीदेवी :- वह अयोध्या के राजा अनरण्य की तथा दशरथ की माता थी। इनके दो पुत्रों के नाम थे “अनंतरथ" और 'दशरथ ।२८
२.२३.५२ अनुकोशा :- वह जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में दारू नामक ग्राम में वसुभूति ब्राह्मण की पत्नी थी, पुत्र अतिभूति को खोजते हुए संत समागम से अनुकोशा साध्वी कमलजीव के समीप दीक्षित हुई।२२६
२.२३.५३ सरसा :- वह अतिभूति की पत्नी थी। 'क्यान' नामक ब्राह्मण उसपर मोहित होकर उसका अपहरण कर ले गया
था |२३०
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