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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
२.२३.२६ पद्मा :- पद्मा राजा पद्मोत्तर की कन्या थी । मेघपुर के राजा अतींद्र के पुत्र श्रीकंठ की पत्नी थी । उसके पुत्र का नाम वज्रकंठ था । १९६०
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२.२३.३० विशल्या :- विशल्या राजा द्रोणधन की तथा महादेवी सुप्रभा की कन्या थी । वह लक्ष्मण की पत्नी थी । प्रतिचंद्र की बहन थी। विशल्या देवांगना के समान सुंदर थी। उसके स्नान का जल अमृत तुल्य था जो व्याधि को दूर कर देता था । अनेकों पीड़ित अयोध्यावासियों की व्याधि उसके जल से दूर हुई। शक्ति से आहत राजा चण्डराव को विशल्या के जल से सींचने पर स्वस्थता तथा सचेतनता प्राप्त हुई । विशल्या के तेजोमय दर्शन से रावण की अमोघशक्ति से आहत लक्ष्मण की मूर्च्छा दूर हुई। विशल्या के पवित्र जल से सारी सेना जीवित हो उठी । १६७
२.२३.३१ अनंगसरा :- विशल्या का पूर्वभव अनंगसरा के रूप में था । अनंगसरा त्रिभुवन आनंद नामक चक्रवर्ती राजा की कन्या थी। विद्याधर पुनर्वसु ने जबर्दस्ती उसका अपहरण किया । पर्णलघु विद्या के सहारे से सूने भयंकर वन में उसे फेंका गया। वह जिनधर्मोपासिका थी। साठ हजार वर्ष तक कामसरा नाम की विशाल नदी के किनारे समाधिपूर्वक वह तप करती रही । एक बार एक विशाल अजगर ने उसके आधे शरीर को निगल लिया। सौदास विद्याधर ने उसे देख लिया । उसने अनंगसरा से पूछा कि अजगर के टुकड़े कर उसके प्राणों को बचा लूं। तब अनंगसरा ने कहा, तपस्वियों के लिए प्राणीवध उचित नहीं है। पिता जी से कहना उनकी पुत्री ने शील की रक्षा की है। अजगर ने उसके शरीर को निगल लिया। जिनेश्वर भगवान् की जय के साथ उसने प्राण त्याग दिये । १६८
२.२३.३२ जितपद्मा :- क्षेमंजली नगर के राजा अरिदमन तथा रानी कन्यकादेवी की पुत्री थी । वासुदेव लक्ष्मण की पत्नी थी १९६ राजा अरिदमन की प्रतिज्ञा को लक्ष्मण ने पांचों ही फैंकी गई शक्तियों के प्रहार को सहन कर पूर्ण किया और जितपद्मा लक्ष्मण का वरण कर लिया। जितपद्मा अनुपम सुंदरी एवं गुणवती थी |२००
२.२३.३३ वनमाला :- वनमाला विशालबाहु राजा महीधर की पुत्री थी । वासुदेव लक्ष्मण की पत्नी थी। लक्ष्मण के वनगमन के समाचार पाकर, अन्य वर की कामना से रहित होकर आत्मघात हेतु प्रयत्नशील रही। लक्ष्मण उसी स्थान पर विद्यमान थे। उन्होंने वनमाला की प्राणरक्षा की तथा राजा महीधर ने लक्ष्मण के साथ पुत्री का विवाह संपन्न किया । २०१
२.२३.३४ हिडिम्बासुंदरी :- विद्याधर श्रेणी के संध्याकार नगर में हिडिम्बवंशोत्पन्न राजा सिंहघोषा तथा रानी लक्ष्मणा की प्रिय पुत्री थी । हिडिम्बा सुंदरी, लक्ष्मण की पत्नी थी। उसकी विमाता का पुत्र भाई हिडिम्बासुर था, जिसके उपकार के वश होकर हिडिम्बासुंदरी ने भाई का साथ दिया । नरभक्षी हिडिम्बासुर की निष्यप्रयोजन हिंसक प्रकृति को उसने रोका। भाई की मृत्यु के निमित्त बने भीमसेन से उसने विवाह किया। कालांतर में पुत्र वीर घटोत्कच को जन्म दिया ।२०२
२.२३.३५ चित्रसुंदरी :- चित्रसुन्दरी वैताढ्य पर्वत के रथनुपुर नगर के अशनिवेग के पुत्र सहस्त्रार की पत्नी थी। गर्भ प्रभाव से उत्पन्न दोहदवश उसके पति ने इंद्र का रूप बनाकर पत्नी के साथ संभोग किया। इसी कारण पुत्र का नाम इंद्र रखा था । २०३
२.२३.३६ चंद्रनखा :- चंद्रनखा रावण की सगी छोटी बहन थी तथा पाताल लंका के राजा खरदूषण की पत्नी थी। उसका पुत्र शंबूक था। पुत्र एवं पति को मारने वाले राम लक्ष्मण से बदला लेने के लिए उसने रावण को प्रोत्साहित किया ।२०४
२.२३.३७ पुरन्दरयशा :- पुरन्दरयशा जितशत्रु राजा और धारिणी की पुत्री, कुम्भकारकटक के राजा दण्डक की पत्नी तथा स्कंदक की बहन थी। एक बार छत पर गिरे हुए मांस और रक्त से रंजित रजोहरण को देखा। उसे पता चला कि उसके पति राजा दण्डक ने उसके मुनि भाई स्कंदक एवं उनके पाँच सौ शिष्यों को घाणी में पिलवा दिया है तथा उनकी मत्यु का निमित्त बना है। तब उस धर्मपरायणा श्रमणोपासिका ने साध्वी दीक्षा अंगीकार कर ली । २०५
२.२३.३८ सीता :- सीता मिथिला नगरी के राजा जनक की पुत्री थी । भामंडल की बहन थी तथा राजा दशरथ के पुत्र श्री राम की पत्नी थी। बचपन में भामण्डल का अपहरण हुआ । विद्याधर चंद्रगति ने पुत्र रूप में उसका पालन किया। चंद्रगति ने शर्त रखी जो वज्रावर्त्त और समुद्रावर्त नामक मजबूत प्रत्यंचा वाले दो दुर्जेय धनुषों को तोड़ेगा वह सीता का वरण करेगा। जनक राजा शर्त मान ली। स्वयंवर का आयोजन किया गया। दशरथ पुत्र श्री राम ने उन दोनों धनुषों को सामान्य धनुष की तरह उठाकर,
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