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________________ 122 पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ २.२३.६ इंदुमालिनी : इंदुमालिनी कपिराज आदित्यराज की पत्नी थी। उसके बाली एवं सुग्रीव नाम के दो पुत्र तथा सुप्रभा नाम की पुत्री थी।७६ २.२३.१० अनुराधा :- अनुराधा चंद्रोदय की पत्नी थी, उसके पुत्र का नाम विराध था।७७ २.२३.११ कनकप्रभा :- कनकप्रभा मारूत् राजा की पुत्री तथा रावण की पत्नी थी।७८ २.२३.१२ माधवी :- माधवी हरिवाहन की पत्नी थी। उसके पुत्र का नाम मधु था।७६ २.२३.१३ मनोरमा :- मनोरमा रावण की पुत्री तथा मधु की पत्नी थी।१८० २.२३.१४ इंद्राणी :- इंद्राणी पाताल लंका के राजा सुकेश की रानी थी। माली, सुमाली और माल्यवान् की माता थी।८१ २.२३.१५ तारा :- तारा ज्वलन सिंह की पुत्री तथा राजा सुग्रीव की पत्नी थी। संकट के समय उसने पातिव्रत्य निभाया। बाली के पुत्र चंद्रकिरण के सान्निध्य में रहकर उसने धैर्यतापूर्वक संकट को पार किया।१८२ २.२३.१६ हरिकांता :- हरिकांता ऋक्षराज की पत्नी थी, वह नल और नील की माता थी।१८३ २.२३.१७ श्रीप्रभा :- श्रीप्रभा सुग्रीव की बहन, तथा रावण की पत्नी थी।८४ २.२३.१८ विदग्धादेवी :- विदग्धा देवी विभीषण की पत्नी थी, विदग्धादेवी ने एक हजार सुंदरियों के साथ, दही, दूब, जल और अक्षत हाथ में लेकर मंगल गीत और बधाईयाँ गा कर अपने द्वार पर पधारे राम-लक्ष्मण का अभिनन्दन एवं स्वागत सत्कार किया था ।१८५ २.२३.१६ उपरम्भा :- उपरम्भा कामध्वज और सुंदरी की कन्या थी। नलकूबेर की पत्नी थी। रावण को उसने आसाली नामक विद्या सिखाई तथा पुनः पतिगृह लौट आई। १८६ २.२३.२० हेमवती :- हेमवती सुरसंगति नगरी के राजा मय की रानी थी, मंदोदरी तथा सुमाली की माता थी।१८७ २.२३.२१ सर्वश्री :- मेघरथ पर्वत की सुंदरी सर्वश्री रावण की पत्नी थी।१८८ २.२३.२२ पद्मावती :- पद्मावती सर्वसुंदर की कन्या थी, तथा रावण की पत्नी थी।६ २.२३.२३ विद्युतप्रभा :- विद्युतप्रभा संध्या एवं कनक की कन्या थी, रावण की पत्नी थी।६० २.२३.२४ प्रीतिमती :- प्रीतिमती कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिंदु की पुत्री तथा सुमाली की पुत्रवधू थी, तथा उसके पुत्र रत्नश्रवा की पत्नी थी।१६१ २.२३.२५ कौशिका :- कौशिका कौतुक मंगल नगर के राजा व्योमबिंदु की पुत्री तथा यक्षपुर के वैश्रवा की पत्नी थी तथा वैश्रवण की माता थी।१६२ २.२३.२६ अशोकलता :- अशोकलता मदनवेगा और बुध की कन्या थी तथा रावण की पत्नी थी।९३ २.२३.२७ चंद्रलेखा, विद्युतप्रभा, तरंगमाला :- ये तीनों राजा दधिमुख तथा तरंगमती की पुत्रियाँ थी। इन तीनों के वर के विषय में मुनि कल्याण मुक्ति ने कहा था कि विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी के राजा सहस्त्रगति को पराजित करने वाले वीर इनके पति होंगे। हनुमान से उन्हें सूचना मिली कि सहस्त्रगति को पराजित करने वाले श्री राम हैं। तब राजा दधिमुख ने किष्किंधा नगर में विराजमान श्रीराम को अपनी तीनों पुत्रियाँ अर्पित कर दी। इन तीनों पुत्रियों ने मंत्र तथा विद्या की साधना की थी। १६४ २.२३.२८ कैकसी :- कैकसी राजा सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा की पत्नी थी। उसके पुत्र ने नौ माणिक्यों से युक्त हार को धारण किया था। उसमें दस मुख प्रतिबिंबित होने से दशानन नाम रखा गया। अन्य पुत्र थे कुंभकर्ण, विभीषण तथा पुत्री थी चंद्रनखा।९५ कैकसी धर्मपरायणा सन्नारी थी। उसने अपने पुत्रों को धर्म-संस्कारों से सिंचित किया था। स्वयं भी धर्ममय जीवन व्यतीत करती थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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