________________
जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
२.२२.२ कमल श्री आदि पांच सौ राजकुमारियाँ :- जंबूद्वीप के महाविदेह में सलिलावती विजय में वीतशोका नगरी के राजा बल के पुत्र राजकुमार महाबल की रानियां थी ।१६० विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता ।
121
२.२२.३ धारिणी :- वीतशोका नगरी के राजा बल की रानी थी। उसके पुत्र का नाम महाबल था । १६१ विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता ।
२.२२.४ पद्मावती :- कौशल देश के साकेतपुर नगर के महाराजा प्रतिबुद्धि थे। उनकी रानी का नाम पद्मावती था, महारानी पद्मावती ने नागदेव उत्सव में भाग लिया था । १६२ विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता ।
२.२३ २०वें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी से संबंधित श्राविकाएँ :
१६४ थी ।
२.२३.१ अपराजिता :- (कौशल्या) १६३ अपराजिता दर्भस्थलनगर के राजा सुकौशल और रानी अमतप्रभा की पुत्री ' अयोध्या नगरी के महाराजा दशरथ की पटरानी तथा आठवें बलदेव "पद्मरथ" अर्थात् मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की महिमामयी माता थी*६५। जिसने पद्मरथ (राम) के गर्भ में आगमन पर बलदेव के जन्म सूचक चार महास्वप्न देखे थे । कौशल्या का जीवन भारतीय आदर्श नारी का था। वह लज्जा, शील, समता और वात्सल्य की प्रतिमूर्ति थी । पुत्र राम के राज्याभिषेक के स्थान पर I वनगमन के आदेश जैसी विपरीत परिस्थिति में भी न तो उसने कैकेयी के प्रति कषाय किया और न ही पति दशरथ के आदेश पर उन्हें कटु शब्दों का उलाहना दिया । संकट की कठोर घड़ियों में उसने क्षमा, विनय और विवेक को धारण किया तथा पति की विश्वास पात्र रही। तभी तो सोलह महान सतियों की श्रेणी में आदरणीय स्थान पाया, पुत्र विरह को अपूर्व धैर्यता के साथ सहन किया । १६६
२.२३.२ पद्मावती'६७ :- भरतक्षेत्र की राजगृही नगरी के राजा सुमित्र की रानी का नाम पद्मावती था, १६ वह रूपवती एवं गुणवती थी। एक बार तीर्थंकर योग्य चौदह शुभ स्वप्न देखकर उसने एक बालक को जन्म दिया। जब पुत्र गर्भ में था तब इस महिमामयी माता ने मुनियों की भांति व्रतों का सम्यक् पालन किया था । अतः बालक का नाम मुनिसुव्रत रखा गया । पुत्र को त्याग के पथ पर अग्रसर किया तथा इस धर्ममयी माता ने स्वयं भी अंत में धर्मसाधनामय जीवन व्यतीत किया ।
२.२३.३ ज्वाला१६९ :- भगवान् ऋषभदेव की वंश परंपरा में हस्तिनापुर के राजा पद्मोत्तर की पटरानी थी* यथा समय उसने चौदह स्वप्न देखकर चक्रवर्ती पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम रखा गया महापद्म । ज्वाला के दूसरे पुत्र का नाम विष्णु कुमार था। इस महिमामयी नारी ने सुसंस्कारों से पुत्रों को सिंचित किया और अपने पुत्र को त्याग के पथ पर आगे बढ़ाया, विष्णु कुमार लब्धिसंपन्न महामुनि हुए थे जिन्होंने संतों को नमुचि के प्रकोप से बचाया था ।
२.२३.४ अनंगकुसुम :- अनंगकुसुम खर तथा चंद्रनखा की पुत्री शंबूक कुमार की बहन, तथा हनुमान की पत्नी थी, पिता खर की मृत्यु के समाचार सुनकर वह मूर्च्छित हुई। परिजनों व पंडितों द्वारा समझाने पर वह आश्वस्त हुई। इसमें उसका पितृप्रेम एवं धर्मपरायणता स्पष्ट झलकती है। १७१
२.२३.५ पुष्परागा :- पुष्परागा सुग्रीव की पुत्री, अंगद की बहन तथा हनुमान की पत्नी थी। अपने पिता सुग्रीव की सुरक्षा राम और लक्ष्मण का सहयोग जानकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। तथा राम एवं लक्ष्मण के प्रति उसे सात्विक गर्व तथा आदर भाव पैदा हुआ।१७२
२.२३.६ लंकासुंदरी • लंकासुन्दरी वज्रायुध की पुत्री थी। हनुमान की पत्नी थी। लंका प्रवेश पर आसाली विद्या को परास्त कर हनुमान ने वज्रायुध को मार गिराया। लंकासुंदरी ने क्रुद्ध होकर हनुमान के साथ वीरता पूर्वक युद्ध किया, अंत में लंका सुंदरी हनुमान से पराजित हुई । हनुमान के पराक्रम से प्रभावित हुई और दोनों का परस्पर विवाह संपन्न हुआ 1993
२.२३.७ अचिरा :- अचिरा लंका सुंदरी की सखी थी। युद्ध में लंकासुंदरी की सारथी बनकर उसने युद्ध की प्रेरणा लंकासुंदरी में भरी । १७४
२.२३.८ तडिन्माला :- कुम्भपुर के राजा महोदर तथा रानी सुरूपनयना की पुत्री थी, तथा कुंभकर्ण की पत्नी थी । १५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org