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"पद्मिनीखंड” नगर भिजवाया। नगर के बाहर ही उसने साध्वियों को देखा। उनके साथ ही वह उपाश्रय में पहुँची। प्रियदर्शना तथा साध्वी सुव्रता को उसने सारा समाचार सुनाया । स्वयं भी उनके साथ मिलकर धर्मध्यान पूर्वक समय व्यतीत करने लगी । वामन रूपधारी पति वीरभद्र से उसके जीवन में बीती घटना को सुनकर उसने पति को पहचान लिया । ५१ अनंगसुंदरी ने एकाकी धैर्यपूर्वक दुःख का समय व्यतीत किया, तथा धर्म ध्यान में अपने अमूल्य क्षणों को सार्थक किया, शील धर्म का पालन किया ।
पौराणिक / प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
२.२१.६ रत्नप्रभा :- रत्नप्रभा रति वल्लभ नामक विद्याधर की इकलौती संतान थी । वीरभद्र को "आभोगिनी" विद्या से विद्याधर ने उसकी पूर्व की दोनों पत्नियों का समाचार सुनाया। वीरभद्र को अपनी पुत्री रत्नप्रभा के योग्य जानकर विद्याधर ने उन दोनों का विवाह किया। कुछ समय बाद वे दोनों पद्मिनीखंड नगर आए । रत्नप्रभा को उपाश्रय से बाहर बिठाकर बोला मै अभी देहचिंता से मुक्त होकर आता हूँ, तुम यहीं बैठना । बहुत प्रतीक्षा के बाद भी जब वीरभद्र नहीं लौटा तो रत्न प्रभा रोने लगी। एक साध्वी आवाज सुनकर बाहर आई तथा उसे अंदर ले गई तीनों हिलमिलकर रहने लगी। वीरभद्र ने वामन का रूप बनाया तथा प्रतिदिन उपाश्रय में आकर तीनों पत्नियों को देखकर प्रसन्न होता था । वामन वेषधारी वीरभद्र ने अपनी कला से सब नगर वासियों को संतुष्ट किया । उसने सुना कि उपाश्रय में तीन सुंदर युवतियाँ पवित्र हैं, किसी पुरूष से नहीं बोलती । यदि कोई उनसे बोले तब भी वे पुरुष से नहीं बोलती । तब वीरभद्र ने कहा मैं उनमें से एक एक को अपने से बोला सकता हूँ। वीरभद्र द्वारा पूर्व बीती बातें सुनाने पर रत्नप्रभा ने पति को पहचान लिया ।१५२ रत्नप्रभा ने प्रेमपूर्वक धर्म ध्यान में अपना चित्त जोड़कर सुखशांति पूर्वक दुःख के समय को व्यतीत किया। शीलधर्म पर दृढ़ रही धर्मश्रद्धा में दृढ़ रही, यही उसकी परम धैर्यता थी।
२.२१.७ पद्मश्री :- आठवें सुभूम चक्रवर्ती की रानी थी । ५३ विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता ।
२.२१.८ पद्मावती :- वह राजेन्द्रपुर के राजा उपेंद्रसेन की अनुपम सुंदरी कन्या थी ।५४ विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता ।
२.२१.६ रेणुका : ऋषि जमदाग्नि की पत्नी थी। वह राजा जितशत्रु की सौ पुत्रियों में से एक थी । ५५ विशेष विवरण प्राप्त नहीं होता। भगवान् अरनाथ जी के शासन में 'दत्त' नामक सातवाँ वासुदेव तथा 'नंदन' बलदेव और प्रहलाद प्रतिवासुदेव हुआ था। उनकी भी धर्मपत्नियाँ थी किंतु विवरण अनुपलब्ध है।
२.२१.१० तारा*५६ :- आठवें चक्रवर्ती सुभूम की माता थी, जो हस्तिनापुर के महाराजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन की रानी थी । ५७ जमदग्नि ऋषि का वध कार्तवीर्य ने किया, अतः ऋषिपुत्र परशुराम ने कार्तवीर्य को मार डाला । क्रोधाग्नि शांत न होने से परशुराम
सात बार पृथ्वी को निःशस्त्र किया। उस समय कार्तवीर्य की रानी तारा गर्भवती थी । अतः वह हस्तिनापुर से गुप्तरूप से पलायन कर अन्य तापस आश्रम में तलघर (भूमिगृह) में रहने लगी। गर्भ काल पूर्ण होने पर तारा ने ऐसे पुत्र को जन्म दिया जिसके मुख में जन्म ग्रहण करने के समय ही दाढ़े और दांत थे । तारा का वह पुत्र माता की कुक्षी से बाहर निकलते ही भूमितल को अपनी दाढ़ों में पकड़कर खड़ा हो गया, अतः उसका नाम सुभूम रखा गया। उस तलघर में ही सुभूम का लालन पालन माता ने किया वहीं क्रमशः वह बड़ा हुआ ।
२.२२ उन्नीसवें तीर्थंकर श्री मल्लिनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.२२.१ प्रभावती :- मिथिला नगरी के कुम्भ महाराजा की महिमामयी महारानी प्रभावती ने एक बार सुप्तावस्था में चौदह शुभ स्वप्न देखे । यथा समय पुत्री रत्न को जन्म देने वाली माता बनी। १५६ एक बार जब पुत्री गर्भ में थी तब माता को दोहद पैदा हुआ कि मैं छः ऋतुओं के फूलों की सुकोमल स्पर्श वाली शय्या पर बैठूं तथा शयन करूं । वाणव्यंतर देवों को इसका ज्ञान होते ही माता की इच्छा के अनुरूप उन्होंने सभी भांति के सुविकसित सुगंधित पुष्पों की शय्या तैयार की तथा एक अद्भुत अलौकिक गुलदस्ता महारानी के सन्मुख प्रस्तुत कर दिया तथा दोहद की पूर्ति की थी । महारानी हर्षित प्रफुल्लित हुई । यथा समय संतान को जन्म दिया। क्योंकि माता को दामगण्ड तथा पांच वर्णों के पुष्पों का दोहद पैदा हुआ था, अतः महाराजा कुम्भ ने पुत्री का नाम " मल्लि" रखा। मल्ली कुमारी ने श्राविका जीवन में ही अपने पूर्व जन्मों के छः मित्रों को प्रतिबोध दिया। पूर्व जन्म के तप के प्रभाव से, तीर्थंकर गोत्र नाम कर्म के उदय से, तथा माता प्रभावती जी से मिले शुभ संस्कारों के ही कारण तीर्थंकर पद प्राप्त कर जिन शासन को दीपाया था ।
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