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जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास
२.१६.४० केसरा :- वह जयंति नगरी के जयंतदेव की बहन थी। वसंतदेव नामक व्यापारी के साथ केसरा का विवाह हुआ । १६ विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता ।
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२. १६.४१ मदिरा :- मदिरा शंखपुर की निवासिनी थी, वह वणिक् कन्या थी। जयंति नगरी की केसरा की मामा की लड़की थी । कृतिकापुर के कामपाल व्यापारी की वह पत्नी थी। १४० विशेष योगदान उपलब्ध नहीं होता ।
२.२० सत्तरहवें तीर्थंकर श्री कुंथुनाथ जी से संबंधित श्राविका
२.२०.१ श्रीदेवी १४१ हस्तिनापुर के महाराजा वसु की महारानी श्रीदेवी ने सर्वोत्कृष्ट महापुरूष के जन्मसूचक चौदह कल्याणकारी महास्वप्न देखें तथा यथासमय सुखपूर्वक चक्रवर्ती एवं तीर्थंकर पदधारी पुत्ररत्न को जन्म दिया | १४२ प्रभु के गर्भ में आने के बाद माता श्रीदेवी ने स्वप्न में रत्नमय विशाल स्तूप को देखा व कुंथु नाम के रत्नों की राशि देखी अतः बालक का नाम "कुंथुनाथ" रखा गया। श्री देवी ने अपने पुत्र के त्याग में सहयोगी बनकर उन्हे संयम मार्ग पर अरूढ़ किया तथा पुत्र वधुओं को सान्त्वना दी । अन्त में स्वयं भी संयमी जीवन अंगीकार किया ।
२. २१ अठारहवें तीर्थंकर श्री अरनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.२१.१ महादेवी १४३ :- हस्तिनापुर के महाराजा सुदर्शन की रानी महादेवी की कुक्षी से चक्रवर्ती एवं तीर्थंकर पुत्र भगवान अरनाथ का जन्म हुआ ।१४४ माता ने चौदह स्वप्न देखे तथा यथासमय पुत्र का जन्म हुआ। चूँकि जब बालक गर्भकाल में था, तब माता ने बहुमूल्य रत्नमय चक्र के अर को देखा इसलिए बालक का नाम "अरनाथ" रखा गया ४५ । निराभिमानी माता ने अपने पुत्र की इच्छा के अनुरुप उसे त्याग मार्ग पर बढ़ाया, पारिवारिक जिम्मेदारी संभाली, अंत में धर्म-ध्यानपूर्वक जीवन व्यतीत किया ।
२.२१.२ वैजयन्ती४६ :- अठारहवें तीर्थंकर भगवान् अरनाथ श्री के शासन में चक्रपुर नामक नगर में महेश्वर नामक परमप्रतापी राजा राज्य करते थे। उनकी महारानी थी वैजयंती महारानी वैजयंती की कुक्षी से छठे बलदेव आनंद का जन्म हुआ था । १४७
२.२१.३ लक्ष्मीवती ४८ :- चक्रपुर नगर के महाराजा महेश्वर की महारानी का नाम लक्ष्मीवती था जो छठें वासुदेव "पुरूष पुण्डरीक" की माता थी ।१४६ पुरूषों में पुण्डरीक कमल के समान सुलक्षण संपन्न होने से पुत्र का नाम 'पुरूष पुण्डरीक' रखा गया । इस महिमामयी धर्मपरायणा सन्नारी के सुसंस्कारों के फलस्वरुप ही वासुदेव पुत्र ने भगवान् अरनाथ के चरणों में सम्यक्त्व को प्राप्त किया तथा धर्म प्रभावना में अपना सहयोग प्रदान किया ।
२. २१.४ प्रियदर्शना :- 'पद्मिनीखंड' नामक नगर के निवासी सेठ सागरदत्त की पुत्री थी। रूप, यौवन, कला और चतुराई में वह परम कुशल थी । उसका विवाह ताम्रलिप्ति नगरी के सेठ ऋषभदत्त के पुत्र वीरभद्र के साथ हुआ था । वीरभ्रद ने अपनी कला और निपुणता का उपयोग करने के लिए विदेश जाने का निर्णय किया। एक बार प्रियदर्शना को सुखपूर्वक सोती हुई छोड़कर वीरभद्र चला गया। प्रियदर्शना प्रवर्तिनी महासती सुव्रताजी के पास जाकर धर्म ध्यानपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगी। वामन वेषधारी पति वीरभद्र द्वारा में उसके साथ बीती घटना का वर्णन करने पर उसने पति को पहचान लिया ।१५० प्रियदर्शना की प्रेरक घटना से यह शिक्षा प्राप्त होती है कि दुःख के समय धर्म ध्यान पूर्वक समय व्यतीत करने से समय सुख शांति पूर्वक व्यतीत होता है । उसकी धर्मनिष्ठा सभी श्राविकाओं के लिए प्रेरणाप्रद है ।
२.२१.५ अनंगसुदरी :- रत्नपुर नगर के राजा रत्नाकर की पुत्री का नाम अनंग सुंदरी था। अनंगसुंदरी के पास उसी नगर के सेठ शंख की पुत्री विनयवती सखी भाव से जाती रहती थी। वीरभद्र विनयवती का धर्म भाई था । वीरभद्र ने स्त्रीवेश में राजकुमारी अनंगसुंदरी को चित्र एवं संगीत कला से प्रभावित किया। अनंगसुंदरी ने स्त्रीवेशधारी वीरभद्र (वीरमती) को सदा के लिए साथ रखने की बात कही। वीरभद्र ने अपना असली पुरूष रूप प्रकट किया। राजा रत्नाकर ने भी वीरभद्र को अनंगसुंदरी के योग्य वर जानकर उन दोनों का विवाह संपन्न किया। वीरभद्र ने पत्नी सहित घर आने हेतु समुद्र यात्रा प्रारंभ की। समुद्र मार्ग से चलते हुए महावायु के प्रकोप से वाहन टूट गया । अनंगसुंदरी के हाथ में जहाज का टूटा हुआ पटिया आ गया। वह पटिया के सहारे तैरते हुए किनारे लग गई। भूखी प्यासी मूर्च्छित अवस्था में किनारे पर पड़ी थी। तापस कुमारों ने उसकी बेहोशी दूर की तथा कुलपति ने उसे
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