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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद् इतिहास 117 २.१६.१३ मदनमंजरी :- वह एक गणिका थी, उसे प्राप्त करने के लिए दो राजकुमार लड़ रहे थे।११ विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.१४ वसुंधरा :- जंबूद्वीप के विदेह क्षेत्र की शुभा नगरी के राजा स्तिमित सागर की रानी थी। उसके पुत्र का नाम अपराजित था।२ विशेष विवरण अनुपलब्ध है। २.१६.१५ अनंगसेना (अनुहारा) :- जंबूद्वीप के विदेह क्षेत्र की शुभा नगरी के राजा स्तिमितसागर की रानी थी। इसने वासुदेव के योग्य सात महास्वप्न देखे और वासुदेव अनंतवीर्य को जन्म दिया।१३ विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.१६ बर्बरिका और किराती :- ये दोनों ही वासुदेव अनंतवीर्य के राज्य की गणिकाएँ थी। इनको पाने के लिए वैताढ्य पर्वत के राजा दमितारि ने वासुदेव अनंतवीर्य से युद्ध किया, विशेष विवरण अनुपलब्ध है। १४ २.१६.१७ कनक श्री :- वैताद्य पर्वत के राजा दमितारि की पुत्री थी। पिता की इच्छा के विरूद्ध वासुदेव अनंतवीर्य के साथ पलायन कर गई। दमितारि और अनंतवीर्य में युद्ध हुआ। अनंतवीर्य दमितारि को हराकर वासुदेव हुआ।१५ २.१६.१८ श्रीदत्ता :- धातकीखंड द्वीप के पूर्व भरत में शंखपुर नगरी थी। वहाँ पर श्रीदत्ता नामक एक दरिद्र स्त्री रहती थी। एक बार उसने तपोधनी संत सत्ययश का उपदेश श्रवण किया। उन्होंने धर्मचक्र तप करने हेतु मार्गदर्शन किया। अपने स्थान पर आकर उसने धर्मचक्रतप की आराधना की। पारणे में उसे स्वादिष्ट भोजन मिला, धनवानों के घर में सरल काम तथा अधिक पारिश्रमिक तथा पारितोषिक भी मिलने लगा। श्रीदत्ता ने थोड़े ही दिनों में कुछ द्रव्य भी संचय कर लिया। अब वह प्रसन्न मन से दानादि भी करने लगी। एक बार वायु के प्रकोप से उसके घर की दीवार का कुछ भाग गिर गया और उसमें से धन निकल आया। उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहा। अब वह विशेष रूप से दानादि सुकृत्य करने लगी। एक बार तपस्या के अंतिम दिन वह सुपात्र दान के लिए किसी उत्तम पात्र की प्रतीक्षा करने लगी। अचानक सुव्रत अणगार को देखा। मासखमण तपधारी मुनिराज को श्रीदत्ता ने भक्तिपूर्वक आहार दान देकर सुपात्रदान का लाभ लिया। उपाश्रय में जाकर श्रीदत्ता ने मुनिराज से धर्मोपदेश श्रवण किया। श्रीदत्ता ने सम्यक्त्व पूर्वक व्रत धारण किया और आराधना करने लगी। उदयभाव की विचित्रता से एक बार उसके मन में धर्म के फल में संदेह उत्पन्न हुआ। एक दिन वह सुयश मुनिराज को वंदन करने गई। वहाँ विमान द्वारा आए दो विद्याधरों के अद्भुत रूप को देखकर मोहित हुई और बिना शुद्धि किये ही आयुष्यपूर्ण कर मर गई।११६ श्रीदत्ता ने श्राविका व्रतों की आराधना की तथा धर्म की आराधना से जन्मी हुई श्रद्धा में गहरी अभिवद्धि की। २.१६.१६ रत्नमाला :- जंबूद्वीप के पूर्व महाविदेह में मंगलावती विजय में रत्नसंचया नगरी के क्षेमंकर राजा की रानी थी। किसी समय महारानी ने चौदह महास्वप्न और पंद्रहवाँ वज देखा। वज्र देखने से पुत्र का नाम “वज्रायुध रखा । विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.२० लक्ष्मीवती :- वजायुध की पत्नी थी, उसके पुत्र का नाम “सहस्त्रायुध था। विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.२१ कनकश्री :- सहस्त्रायुध की रानी थी। उसने महाबली पुत्र “शतबल' को जन्म दिया। विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.२२ सुकान्ता :-शुक्लनगर के शुक्लनरेश के पुत्र पवनवेग की रानी थी और दीपचूल नरेश की पुत्री थी। इसकी पुत्री शांतिमति थी।२० विशेष विवरण उपलब्ध नहीं होता। २.१६.२३ शांतिमति :- शुक्लनगर राजा पवनवेग एवं रानी सुकान्ता की पुत्री थी। इसने मणिसागर पर्वत पर भगवती प्रज्ञप्ति नाम की विद्या सिद्ध की थी।१२१ २.१६.२४ प्रभंकरा :- जंबूद्वीप के ऐरावत क्षेत्र के विंध्यपुर नगर में धर्ममित्र सार्थवाह के दत्त नामक पुत्र की पत्नी थी। कालांतर में राजकुमार नलिनकेतु ने प्रभंकरा के रूप से आकर्षित होकर उसका अपहरण किया और अपनी रानी बनाया। सरल एवं भद्र स्वभाव वाली रानी प्रभंकरा ने प्रवर्तिनी सती सुव्रता के पास चंद्रायण तप किया।१२२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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