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________________ 114 पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ सोते हुए उसने चार महास्वप्न देखे । यथासमय महाबलशाली शीतल स्वभाव वाले सुपुत्र "सुप्रभ” को जन्म दिया।२ सुसंस्कारी माता ने महापुण्यवान व्रत धारी सुश्रावकरत्न सुप्रभ जी को जन्म दिया जिसने जिन धर्म की महती प्रभावना की। २.१७.२ सीता देवी :- द्वारिका नगरी में सोम नामक प्रसिद्ध राजा राज्य करते थे। उनकी शीतल कांतिवाली स्निग्धदर्शना सीता नाम की महारानी थी। किसी समय सुखपूर्वक सोते हुए उसने सात स्वप्न देखे । कालांतर में शुभ लक्षण संपन्न एक पुत्ररत्न को जन्म दिया। सीता देवी का यह सुपुत्र “पुरूषोत्तम” नामक वासुदेव हुआ। जो दृढ़ धर्मी प्रियधर्मी था। उसके धर्मसंस्कारों के सींचन में सीतादेवी का बहुत बड़ा योगदान था। २.१७.३ सुयशा देवी :- इसी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में इक्ष्वाकुवंश के कुलदीपक महाराजा सिंहसेन एवं उनकी पतिपरायणा सद्गुण संपन्ना महारानी थी सुयशादेवी । जो क्रमशः चौदहवें तीर्थंकर अनंतनाथ भगवान् के पिता एवं माता थे। माता ने सुखपूर्वक पुत्ररत्न को जन्म दिया। चूंकि बालक के गर्भावस्था में रहते हुए पिता ने दुर्दान्त शत्रु सैन्य दल पर विजय प्राप्त की थी, अतः बालक का नाम “अनन्त कुमार रखा गया। माता सुयशा ने यह जानते हुए भी कि पुत्र अनासक्त योगी है, भोगों के लिए उन्हें विवश किया। परन्तु पुत्र की इच्छा के अनुरुप उन्हें त्यागमार्ग पर बढ़ने की अनुमति भी प्रदान की। अतः प्राणी मात्र के कल्याण हेतु उनका अमूल्य योगदान रहा। २.१८ पंद्रहवें तीर्थंकर श्री धर्मनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ : २.१८.१ सुव्रतादेवी :- रत्नपुर के महाप्रतापी महाराजा भानु की पटरानी सुव्रतादेवी की कुक्षी से पंद्रहवें तीर्थंकर धर्मनाथ प्रभु का जन्म हुआ। महारानी सुव्रतादेवी नारी के समस्त उत्तम लक्षणों व गुणों से युक्त थी। बालक के गर्भ में रहते हुए माता को धर्म साधना के उत्तम दोहद उत्पन्न होते रहें अतः महाराजा सहित सबने मिलकर "धर्मनाथ" नाम रखा। माता ने पुत्र की त्यागमयी वृत्तियों के प्रवाह को देखते हुए उसे संयम मार्ग पर बढ़ाया तथा पुत्रवधुओं को धैर्य बंधाया, स्वयं ने भी धर्ममय जीवन व्यतीत किया। २.१८.२ अम्बिकादेवी :- (अम्मदेवी) अश्वपुर नगर के महाराजा शिव की महारानी थी तथा पांचवें वासुदेव पुरूष सिंह की माता थी। माता अम्बिका वासुदेव जन्म के सूचक सात महास्वप्न देखकर अति हर्षित हुई। कालांतर में पुत्ररत्न का जन्म हुआ। पुरूषों में सिंह के समान पराक्रमी होने से उनका नाम रखा गया “पुरूषसिंह" कुमार | अम्बिका देवी पति के स्वर्गगमन को सन्निकट जानकर व देखकर सोलह शृंगार करके उनसे पूर्व ही सती बन गई। माता ने धर्म संस्कारों से पुत्र को सिंचित किया, जिसके प्रभाव से पुरुष सिंह कुमार ने तीर्थंकर धर्मनाथ के शासन की महती प्रभावना की। अंबिकादेवी के जीवन से यह प्रमाणित होता है कि पौराणिक काल में स्त्रियाँ पति की उपस्थिति में ही सती हो जाया करती थी। २.१८.३ विजयादेवी :- इसी जंबूद्वीप के अश्वपुर नगर में शिव नामक राजा राज्य करते थे, जिनकी महारानी का नाम देवी। माता विजयादेवी चार शुभस्वप्न देखकर हर्षित हुई। गर्भ का समुचित पालन पोषण करते हुए उसने यथासमय (बलदेव) पुत्ररत्न को जन्म दिया।२ क्योंकि वह सुदर्शन स्वरूप वाला था अतः उसका नाम रखा गया “सुदर्शन" कुमार। माता विजयादेवी के धर्म संस्कारों का ही पुण्यप्रभाव था कि उसका पुत्र बलदेव सुश्रावक एवं सुसाधु बनकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गया। २.१८.४ भद्रा :- इसी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में श्रावस्ती नगरी में महाराजा समुद्रविजय शासन करते थे। उनकी महारानी का नाम भद्रा था। सुखपूर्वक शयन करते हुए एक बार भद्रा ने चतुर्दश महास्वप्न देखे। समय आने पर माता भद्रा ने सुखपूर्वक इंद्र के समान पराक्रमी एक पुत्ररत्न को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया “मघव" | माता भद्रा ने पुत्र को धर्मसंस्कारों से सिंचित किया जिसके प्रभाव से चक्रवर्ती पुत्र मघव ने चारित्र अंगीकार कर मोक्ष प्राप्त किया। ___२.१८.५ सहदेवी५ :- भगवान् धर्मनाथ के शासन में हस्तिनापुर नगर में महाराजा अश्वसेन राज्य करते थे। उनकी गुणसंपन्ना का नाम सहदेवी था जो चतुर्थ चक्रवर्ती सनत्कुमार की महिमामयी मातेश्वरी थी।६ रानी ने सुखपूर्वक सोते हुए चौदह मंगलकारी शुभ स्वप्न देखे। गर्भ का समुचित रूप से पालन पोषण कर कालांतर में सुखपूर्वक तेजस्वी पुत्र रत्न सनत् कुमार को जन्म दिया। सर्व नेत्रों को हरण करने वाले आनन्द देने वाले आकर्षक देहयष्टि रूप पुत्र का जन्म माता के पुण्य का ही प्रभाव था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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