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जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास
२.१५.२ गुणमंजरी :- वह एक गणिका थी । गुणमंजरी को प्राप्त करने के लिए विंध्यपुर नगर के राजा विंध्यशक्ति एवं साकेतपुर के अधिपति राजा पर्वत के बीच युद्ध हुआ था
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२. १५. ३ श्रीमती :- विजयपुर के राजा श्रीधर की पत्नी श्रीमती रानी थी, तारक उसका पुत्र था । ५९
२.१५.४ उमादेवी° :- द्वारका नगरी में महाराजा ब्रह्म बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के शासन में हुए थे। ब्रह्म की पटरानी का नाम था उमादेवी जिनकी कुक्षी से द्वितीय वासुदेव द्विपृष्ठ का जन्म हुआ था । " सुखपूर्वक सोते हुए माता उमादेवी ने सात महास्वप्न देखे तथा हर्षित हुई। कालांतर में उन्होंने तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया नाम रखा द्विपृष्ठ। इस महिमामयी माता के संस्कारों का ही प्रभाव था कि द्विपष्ठ वासुदेव भोगों में भी धर्माभिमुख बने रहे। उस संस्कारवान् पुत्र ने धर्म तीर्थ के आगमन पर भक्तिवश महादान दिया ।
२.१५.५ सुभद्रा :- द्वारका नगरी के राजा ब्रह्म की पटरानी का नाम सुभद्रा था, जो द्वितीय बलदेव विजय की माता थी । ६३ किसी समय सुखपूर्वक सोते हुए सुभद्रा चार महास्वप्न देखकर जागत हुई, । स्वप्न फलीभूत बने अतः सावधानी से गर्भ का पालन पोषण करती रही, कालांतर में उसने तेजस्वी स्फटिक सम निर्मल उज्जवल वर्ण युक्त पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया "विजय"। माता सुभद्रा ने पुत्र को धर्मसंस्कारों से सिंचित कर गुणवान् बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
२.१५.६ रोहिणी :- भगवान् वासुपूज्य का पुत्र राजा मघवा और रानी लक्ष्मी की पुत्री थी रोहिणी । वह नागपुर के राजा अशोकचंद्र की रानी थी। रोहिणी ने अपने जीवन में कभी दुःख देखा ही नहीं था। राजा ने उसके पुत्र को जमीन के ऊपर पटक दिया, फिर भी उसे दुःख नहीं हुआ। दुःख क्या है? शोक क्या होता है? इससे वह सर्वथा अनभिज्ञ थी। एक बार वासुपूज्य भगवान् के शिष्य मुनि रूप्यकुम्भ और मुनि स्वर्णकुम्भ नागपुर पधारे। राजा अशोक चन्द्र ने मुनि से प्रश्न पूछा - भन्ते । रोहिणी सर्वथा सुखिया क्यों हैं? तब मुनि ने बताया कि रोहिणी ने पूर्व भव में रोहिणी तप किया था, जिसके प्रभाव से वह इस भव में सदा सुखिया रही है। मुनि से पूर्वभवका वृत्तान्त सुनकर राजा रानी दोनों ने श्रावक व्रतों को अंगीकार किया । ६४
२.१६ तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.१६.१ श्यामादेवी :- इसी जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में कांपिल्यपुर नाम का नगर था जहाँ गुण संपन्न राजा पद्मसेन राज्य का संचालन करते थे। उनकी पतिपरायणा, सौंदर्यसंपन्न, शीलसंपन्न महारानी श्यामादेवी थी । चतुर्दश स्वप्नदर्शन के पश्चात् माता ने सुखपूर्वक तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया ।६५ बालक के गर्भ में रहने के समय माता तन मन से निर्मल बनी रही, अतः सबने मिलकर "विमल" नाम प्रदान किया । ६६ समस्त भोगों के प्राप्त होने पर भी अपने पुत्र को अनासक्त देखकर धर्म परायणा माता ने उसे त्याग मार्ग पर बढ़ने की अनुमति प्रदान की तथा पुत्रवधुओं को सान्त्वना दी। अंत में स्वयं भी धर्म तीर्थ में गोते लगाते हुए धर्ममय जीवन व्यतीत किया ।
२.१६.२ सुप्रभा ७ :- इसी भरतक्षेत्र के द्वारिका नगरी में रूद्र नामक महाराजा राज्य करते थे जिनकी रानी का नाम सुप्रभा था। महारानी ने एक बार सुखपूर्वक सोते हुए बलदेव पुत्र के जन्म सूचक चार स्वप्न देखे। कालांतर में गर्भ का समुचित पालन करते हु उसने तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया भद्र कुमार
२.१६.३ पृथ्वीदेवी " :- द्वारिका नगरी के महाराजा रूद्र की महारानी थी पृथ्वीदेवी। एक बार सुखपूर्वक शयन करते हुए सात महास्वप्न देखकर वह जाग्रत हुई । यथासमय उसने वैडूर्यमणि के समान तेजस्वी कांतिवाले पुत्ररत्न को जन्म दिया जिसका नाम रखा गया "स्वयंभू " 19°
महायशस्वी पृथ्वीदेवी ने ऐसे समृद्धिशाली संस्कारी सुपुत्र को जन्म दिया, जिसने धर्म तीर्थंकर के आगमन की खुशी में महादान अर्पित किया ।
२.१७ चौदहवें तीर्थंकर श्री अनंतनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.१७.१ सुदर्शनादेवी" :- द्वारिका नगरी के सोम राजा की शीतल कांतिवाली महारानी थी सुदर्शना। किसी समय सुखपूर्वक
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