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पौराणिक/प्रागैतिहासिक काल की जैन श्राविकाएँ
२.१३.दसवें तीर्थंकर श्री शीतलनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.१३.१ नंदा देवी : इसी जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र में भद्दिलपुर नगर के राजा थे दढ़ रथ, जिनकी पटरानी का नाम था नंदा देवी। सुखपूर्वक सोते हुए उन्होंने चौदह महास्वप्न देखे तथा पुण्यशाली पुत्र प्राप्ति का फल सुनकर हर्षोल्लास पूर्वक समय व्यतीत करने लगी। महारानी ने सुखपूर्वक यथासमय पुत्र को जन्म दिया। एक बार महाराजा दृढ़रथ के शरीर में भयंकर दाह-ज्वर की पीड़ा हुई। विभिन्न उपचारों से भी पीड़ा शान्त नहीं हुई, परन्तु एक दिन गर्भवती नंदादेवी के कर स्पर्श मात्र से वेदना शांत हो गई। तथा राजा के तन मन में शीतलता छा गई। इससे अभिभूत होकर सबने मिलकर बालक का नाम शीतलनाथ रखा। वैभव विलास की चकाचौंध में रहकर भी अपने पुत्र के अनासक्त योग को नज़र में रखते हुए उसने उन्हें दीक्षित किया, तथा इस महिमामयी माता ने स्वयं भी धर्मसाधनामय जीवन व्यतीत किया। २.१४ ग्यारहवे तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथ जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.१४.१ विष्णुदेवी :- भारतवर्ष के सिंहपुर नगर के महाराजा विष्णु की रानी का नाम विष्णुदेवी था। विष्णुदेवी ग्यारहवें तीर्थंकर भगवान् श्रेयांसनाथ को जन्म देनेवाली महिमामंडित सन्नारी रत्ना थी। जब बालक गर्भ में आया, माता ने चौदह स्वप्न देखें । यथा समय सुखपूर्वक पुत्ररत्न को जन्म दिया, जिससे सर्वत्र सुख शांति का वातारण हो गया। बालक के गर्भकाल से जन्म तक समस्त राज्य का कल्याण हुआ, अतः सबने मिलकर गुणनिष्पन्न श्रेयांस कुमार नाम रखा। इस धर्ममयी सन्नारी ने अपने पति एवं पुत्र को त्याग के पुण्यपथ पर अग्रसर किया । पारिवारिक जिम्मेदारियों का स्वयं कुशलतापूर्वक निर्वाह किया तथा अन्त में संयमी जीवन को अंगीकार किया।
२.१४.२ भद्रा :- पोतनपुर के महाराजा प्रजापति की रानी भद्रा की कुक्षी से प्रथम बलदेव अचल जी का जन्म हुआ।१ रानी भद्रा भद्र 'प्रकृति वाली पति भक्त शीलवती सन्नारी थी। एक बार सुखपूर्वक सोते हुए उसने परम आनंदकारी चार शुभ स्वप्न देखे, हर्षित हुई। स्वप्नफल सुनकर गर्भ का समुचित रीति से पालन किया तथा कालांतर में पुत्ररत्न को जन्म दिया। पुत्ररत्न का नाम उन्होंने अचल रखा। भद्रा भक्तिमान् सुश्राविका थी। वह देवपूजा आदि षट्कर्मों में लीन रहती थी।
२.१४.३ मृगावती ५२ :- पोतनपुर निवासी महाराजा प्रजापति की महारानी मृगावती की कुक्षी से प्रथम वासुदेव त्रिपृष्ठ का जन्म हुआ/६३ मृगावती मगसदश नेत्रोंवाली मृग चिन्हित चंद्रमा के समान सुंदर तथा रोहिणी के समान बुद्धिमती थी। अतः वह महाराजा द्वारा पटरानी पद पर आसीन थी। मृगावती ने सुखपूर्वक सोते हुए सात महास्वप्न देखे। स्वप्न देखकर उसका फल सुनकर वह प्रसन्न मन से गर्भ का सम्यक् पालन करने लगी। यथासमय सुखपूर्वक तेजस्वी बालक को जन्म दिया तथा तीन वंश को उनके पीछे देखकर उनका नाम त्रिपृष्ठ रखा। इस सन्नारी ने अपने प्रिय पुत्र को समस्त कलाओं में निपुण बनाया, तथा धर्म संस्कारों से सिंचित किया। स्वयं भी धर्ममय जीवन व्यतीत किया।
२.१४.४ प्रियंगु :- प्रियंगु भरतक्षेत्र की राजगही नगरी के राजा ऋषभनंदी की रानी थी, उसके पुत्र का नाम विशाखानंदी
था (५४
२.१४.५ धारिणी :- धारिणी ऋषभनंदी के छोटे भाई विशाखाभूति की पत्नी थी, उसके पुत्र का नाम ऋषभभूति था ।५५ २.१५ बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य जी से संबंधित श्राविकाएँ :
२.१५.१ जयादेवी :- भारत की प्रसिद्ध चम्पानगरी के प्रतापी राजा वसुपूज्य की महारानी का नाम जयादेवी था [५६ वह सीता की तरह गंभीर, मंदगति से चलनेवाली तथा सबकी प्रीतिपात्र थी। एक बार महारानी जयादेवी सुखपूर्वक निद्राधीन थी, तभी उसने चौदह महास्वप्न देखें एवं गर्भधारण किया । यथा समय सर्वांगसौंदर्य संपन्न पुत्ररत्न को जन्म दिया। सब ओर खुशियाँ छा गई। वसु । सूर्य के समान तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ है जो जगत् के प्राणी रूप कमलों को विकसित करनेवाला है। महाराजा वसुपूज्य का पुत्र होने से बालक का सार्थक नाम “वासुपूज्य रखा गया। माता ने अपने धर्मम्य संस्कारों के फलस्वरुप पुत्र को त्यागमार्ग पर अग्रसर किया तथा पुत्र के केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् स्वयं भी दीक्षित होकर आत्म कल्याण किया।
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