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________________ जैन श्राविकाओं का बृहद इतिहास 107 २. श्वेताम्बर परम्परा के चरित-काव्यों, का रचनाकाल ई० सन् की दूसरी, तीसरी शती से लेकर उन्नीसवीं, बीसवीं शती ३. दिगम्बर परंपरा के जैन पुराण ग्रंथों का रचनाकाल ई. सन् की आठवीं से पंद्रहवीं शतीं है। तथाकथित तीनों प्रकार के साहित्य का समावेश जैन कथा वाङ्मय में हुआ है। इस विशाल जैन कथा साहित्य के मूल केन्द्र तीर्थंकर रहे हैं। सारी कथाएँ उनको अथवा उनके पूर्व जीवन वृत्त को अथवा उनके शासनकाल में हुए साधकों / साधिकाओं को आधार बनाकर लिखी गई हैं। किंत जहाँ तक उनकी ऐतिहासिकता का प्रश्न है. भ. पार्श्वनाथ जी और भ. महावीर जी के शेष सभी तीर्थंकरों को प्रागैतिहासिक/पौराणिक काल के अंतर्गत रखा है, अतः इसी आधार पर भ०. ऋषभ देवजी से लेकर भ०. अरिष्टनेमि जी के शासनकाल की श्राविकाओं का वर्णन हमने पौराणिक काल की श्राविकाओं के रूप में किया है। प्रस्तुत वर्णन में जो मुख्य आधार ग्रंथ रहे हैं, वे हैं, दसवीं शताब्दी के आचार्य शीलांक रचित चउपन्न महापुरिसचरियं, बारहवीं शताब्दी के आचार्य हेमचन्द्रसूरि रचित त्रिषष्टिशलाका पुरूष चरित्र तथा दिगंबर परंपरा में इन पौराणिक आख्यानों का आधार है जिनसेन का महापुराण, विमलसूरि का पउम चरियं तथा महाकवि स्वयंभू कृत पउमचरित्रं, जो महाकाव्यों के रूप में प्रतिष्ठित है। अन्य आधार ग्रंथों में हमने उपाध्याय पुष्करमुनिकृत जैन कथा साहित्य के एक सौ आठ (१०८) भाग ग्रहण किये है। परंपरागत मान्यता के अनुसार प्रत्येक तीर्थंकर के संघ में श्राविकाओं की संख्या कितनी थी? उसका विवरण निम्न सूची द्वारा उपलब्ध होता हैं ।२.व क्र.सं. तीर्थकर नाम श्रावकों की संख्या श्राविकाओं की संख्या १ भ०. श्री आदिनाथ जी. ३ लाख ५ लाख २ भ०. श्री अजितनाथ जी. ३लाख ५ लाख ३ भ०. श्री सम्भवनाथ जी. ३ लाख ५ लाख ४ भ०. श्री अभिनन्दननाथ जी. ३ लाख ५ लाख ५ भ०. श्री सुमतिनाथ जी. ३ लाख ५ लाख ६ भ०. श्री पद्मप्रभु जी. ३ लाख ५ लाख ७ भ०. श्री सुपार्श्वनाथ जी. ३ लाख ५ लाख ८ भ०. श्री चन्द्रप्रभु जी. ३ लाख ५ लाख ६ भ०. श्री पुष्पदन्त जी. २ लाख ४ लाख १० भ०. श्री शीतलनाथ जी. २ लाख ४ लाख ११ भ०. श्री श्रेयांसनाथ जी. २ लाख ४ लाख १२ भ०. श्री वासुपूज्य जी. २ लाख ४ लाख १३ भ०. श्री विमलनाथ जी. २ लाख ४ लाख १४ भ०. श्री अनन्तनाथ जी. २ लाख ४ लाख १५ भ०. श्री धर्मनाथ जी. २ लाख ४ लाख १६ भ०. श्री शान्तिनाथ जी. २ लाख ४ लाख १७ भ०. श्री कुन्थुनाथ जी. ३ लाख १८ भ०. श्री अरनाथ जी. १ लाख ३लाख ज 0 0 0 १ लाख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003610
Book TitleJain Shravikao ka Bruhad Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages748
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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