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साध्वी डॉ. प्रतिभा
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फासिदिएण वसणं पत्ता सोमालिया नरेसाई। इक्किक्केण वि निहया जीवा, किं पुण समग्गेहिं ? ||
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 648) फासिंदिएण दिट्ठो नट्ठो सोमालिया महीवालो। इक्किक्केण वि निहया किं पुण जे पंचसु पसत्ता।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 704) अभिंतर बाहिरए तवम्मि सत्तं सयं अगूहिंतो। उज्जमसु सए देहे अप्पडिवद्धो अणलसो तं।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 693) अमिंतर–बाहिरयं कुणसु तवं वीरियं अगूहिंतो। विरयनिगूही वंधई मायं विरियंतराय च।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 709) अकडुमतित्तमणं विलमकसायमलवणयं तहा महुरं। अविरसमदुभिगंधं अच्छामणुण्हं अणइसीयं ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 759) अकडुमतित्तयमणंबिलं च अकसायमलवणयं महुरं। पाणयमणुण्ह-सिसिरं दायव्वं होइ खमगस्स।।
मद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 718) सारेयव्वो खवओ निज्जामयसूरिणा तओ झत्ति। जह सो विसुद्धलेसो पच्चागयचेणो होज्जा।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 766) तो मुझंतो सम्म तह भणियव्वो जहाऽऽगमं गणिणा। जह सो विसुद्ध लेसो पच्चागयचेयणो होइ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 724) सुण धीर ! को वि सुहडो उत्तमवंसो जणे वि पत्त जसो। माणी मरणभएण रणम्मि नासिज्ज हक्काओ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथ को नाम भडो कुलजो माणी धूलाइऊण जणमज्झे। जुज्झे पलाद आवऽियमित्तगो चेव अरिभीओ ? ||
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 731) तं सरसि महपइन्ना जं विहिया संहा सक्खिया तुमए। 'भंते ! सव्वाहारं पच्चखामि त्ति जाजीव' ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 783) संभरसु सुयण ! जं तं मत्झम्मि चउव्विहस्स संघस्स। वूढा महापइण्णा अहयं आराहइस्सामि।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 730)
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