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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 81 40- परलोयम्मि य चोरो करेइ नरयम्मि अप्पणो वसहिं। तिव्वाओ वेयणाओ अणुभवइ तत्थसुचिरं पि।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 616) चोरो परलोयम्मि वि निवऽइ अइतिव्ववेयणे नरए। तिरिएसु य तम्मि पुणो पावइ तिक्खाइं दुक्खाई।।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 533) 41- नवगुत्तीहिं विसुद्धं धरिज्ज वंभं विसुद्धपरिणामो। सव्ववयाण वि पवरं सुदुद्धरं विसयलुद्धाणं ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 618) रक्खाहि बंभचेर च बंभगुत्तीहिं नवहिं परिसुद्धं । निच्चं पि अप्पमत्तो पंचविहे इत्थिवेरग्गे।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 541) 42- अजसमणत्थं दुक्खं इहलोए दुग्गई य परलोए। संसारं च अपारं न मुणइ विसयाऽऽमिसे गिद्धो।। __(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 620) अयसमणत्थं दुक्खं इहलोए, दुग्गइं च परलोए। संसारं च अणंतं न गणइ विसयामिसे गिद्धो।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 557) 43 मिच्छत्ताइचउद्दसभेए अभिंतरे चयसु गंथे। खित्ताइ दसविहे वि य धीर ! तुमं तिविहतिविहेणं।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 625) अभिंतर बाहिरए सव्वे गंथे तुमं विवज्जेहि। कय-कारिय-ऽणुईहिं काय-मणो वयणजोगेहिं।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 646) गंथनिमित्तं कुद्धो कलहं बोलं करिज्ज वेरं वा। पहणिज्ज व मारिज्ज व मारिज्जिज्ज व तह परेणं ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 626) संगनिमित्तं मारेइ भणियं अलियं करेइ चोरिक्कं । सेवइ मेहुण मुच्छं च अपरिमाणं कुणइ जीवो।।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 653) 45- सोएण सुभद्दाई निहया, तह चक्खुणा वणिसुयाई। घाणेण कुमाराई रसणेण हया सुदासाई ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 647) सोत्तेण पवसियपिया चक्खुराएण माहुरो वणिओ। घाणेण रायपुत्तो, निहओ रसणाइ सोदासो।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 703' 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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