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साध्वी डॉ. प्रतिभा
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अप्पपसंसं चयसू, परपरिवायं च मा करिज्जा हि। सज्झाए आउत्तो गच्छम्मि य वच्छलो होहि।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका,गाथा 115) अप्पपसंसं सप्पं व चयस. सप्परिसनिंदियं अहम। विसमुच्छियं व पुरिसं जा कुणइ विवेयनिस्सारं ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 214) अप्पपसंसा पुरिसस्स होइ चिंधं सुनिग्गुणत्तस्स। जइ तस्स गुणा हांता ता नूण जणो वि सलहंतो।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 215) सयणे व परजणे वा परपरिवायं व चयसु निच्चंपि। अच्चसायणभीओ परगुणदंसी सया होहि।। .
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 216) जो सगिहं तु पलित्तं अलसो न वि विज्झवे पमाएणं। सो किह सद्दहियव्वो परघरडाहप्पसमणम्मि ?||
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका,गाथा 120) जो सघरं पि पलित्तं निच्छइ विज्झाविउं पमाएणं । कह सो सद्दहियव्वो परघरदाहं पसामेउं ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 182) एसो सव्वसमासो, तह घत्तह जह हविज्ज भुवणम्मि। तुझं गुणेहि जणिया सव्वत्थ वि विस्सुया कित्ती।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 124) एसो सव्वसमासो-तह पेच्छह अप्पयं पयत्तेण। जह तह गुणसंजणिया कित्ती सव्वत्थ वित्थरइ ।।
_ (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 223) ताहे संठविय गणं विहिणा, एमेव गणनिसग्गं च । काऊण सूरिखवगो आराहणमारुहे सम्म ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 144) गणसंकमणं काउ इमेण विहिणा विहाडियममत्ता। आराहितां सत्ता करिति दुक्खक्खयं धीरा।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 315) जं कुणइ भावसल्लं अणुद्धियं उत्तमट्ठकालम्मि। दुल्लहवोहीयत्तं अणंतसंसारियत्तं च।।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 216) एगमवि भावसल्लं अणुद्धरिता य जो कुणइ सल्लं। लज्जाइ गारवेण य न हु सो आराहओ होइ ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 329)
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