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________________ 74 साध्वी डॉ. प्रतिभा 31- आसी अणंतखुत्तो संसारे ते छुहा वि तारिसिया। जं पसमेउं सववो पुग्गलकाओ वि न तरिन्जा ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 880) आसी अणंतखुत्तो संसारे ते खुहा वि तारिसिया। जं पसमेउं सव्वो पुग्गलकाओ वि न तरिज्जा।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 783) 32- जइतारिसिया तण्हा छुहाय अवसेण सा तए सोढा। धम्मो त्ति इमा सवससेण कहं सोढुं न तीरिज्ज ?|| (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 881) जइतारिसिया तण्हा छुहा य अवसेण सा तया सोढा। धम्मो त्ति इमा सवससेण कह पुण सोढुं न तीरिज्जा ? || (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा :84) प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका एवं वीरभद्राचार्य विरचित आराधनापताका की आंशिक भिन्नता वाली गाथाएं 1- तणुसंलेहा तिविहा उक्कोसा 1 मज्झिमा2जहण्णा 3 य। बारस वासा 1 बारस मासा 2 पक्खा वि बारस उ 3 || (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 09) संलेहणाइ कालो उक्किट्ठो जिणवरेहिं निदट्ठो। कालम्मि पहुप्पंते बारस वासाणि पुण्णाणि।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 154) 2- वासं कोडीसहियं आयामं कटु आणुपुव्वीए। संलेहित्तु सरीरं भत्तपरिन्नं पवज्जेइ ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 12) वासं कोडीसहियं आयामं कटु आणुपुव्वीए। पाओवगमं धीरे पडिवज्जइ मरणमियरं वा ।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 157) 3- एवं सरीरसंलेहणाविहिं वहुविहं पि फासिंतो। अज्झवसाणविसुद्धी खणमवि खवओ न मुंचिज्जा।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 15) वायक्खोभा दिभया जहसत्तीए तवं कुणइ एसो । अज्ावसाणविसुद्धि संलिहमाणो न मुंचिज्जा ।। पदाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 158) 4-- अज्झवसाणविसुद्धी कसायकलुसियमणस्स नत्थि त्ति। अज्झवसाणविसुद्धी कसायसंलेहणा भणिया ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गा, 16) अज्झवसाणविसुद्धी कसायकलुसीकयस्स से नत्थि। ता तस्स सुद्धिहेउं संलिहइ तओ कसायकलिं ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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