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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 25- तो तस्स तिगिच्छाजाणगेण सवयस्स सव्वसत्तीए। विज्जाऽऽएसेण व से पऽिकम्मं होइ कायव्वं ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 763) तो तस्सतिगिच्छा जाणगेण खमगस्ससव्वसत्तीए। विज्जाएसेणऽहवा परिकम्मं होई कायव्वं ।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 720) 26- को सि तुमं? किंनामो ? कत्थाऽसी ? को व संपईकालो ? | किं कुणसि तुमं ? किह वा अच्छसि ? किं नासमको वा हं?|| (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 767) कोसि तुमं? किंनामो ? कत्थ वससि ? को व संपयं कालो ? | किं कुणसि ? किह व अच्छसि ? को वा हं? सुयणु ! चिंतेसु।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 725) 27- किं पुण जइणा संसार सव्वदुक्खक्खयं करितेण। बहुतिव्वकम्म फलजाणएण न घिई करेयत्वा ?|| (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 738) किं पुण जइणा संसार सव्वदुक्खक्खयं करितेण। बहुतिव्वकम्मसजाणएण न धिई करेयत्वा ? || (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 738) 28- मेरुव्व निप्पकंपा अक्खोभा, सायरो ब्व गंभीरा। धिरमता सुप्पुरिसा होंति महल्लावईए वि।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 782) मेरुव्व निप्पकंपा अक्खोभा, सायरो ब्व गंभीरा । धीमंता सप्पुरिसा हुंति महल्लावईहिं वि।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 739) 29- नरएसु वेयणाओ अणोवमाओ असायबहुलाओ। कायनिमित्तं पत्तो अणंतसो तं बहुविहाओ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 843) नरएसु वयणाओसी उण्हकयाओ बहुवियप्पाओ। कायनिमित्तं पत्तो अणंतखुत्तो सुतिक्खाओ।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 758) 30- तण्हा अणंतखुत्तो संसारे तारिसी तुम आसी। जं पसमेउं सव्वोदहीणमुदयं न तीरिज्जा।।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 879) तमहा अणंतखुत्तो संसारे तारिसी तुम आसी। जं पसमेउं सव्वो दहीणमुदयं न तीरिज्जा।। (वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 782) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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