________________
प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
75
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 159) 5- कोहं खमाए, माणं मददवया अज्जवेण मायं च। संतोसेण य लोहं जिणइ हु चत्तारि वि कसाए।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 17) कोहं खमाइ, माणं च मद्दवेणऽज्जवेण मायं च । संतोसेण य लोहं संलिहइ लहुं कसाए सो।।
रभदाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथ 6- पडिचोयणअसहवाय खहिय पडिवयणइंधणाइद्धो। चंडो हु कसाग्गी सहसा संपलिज्जाहि।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 18)
तं वत्थु मुत्तव्वं जं उपज्जए कसायग्गी। तं आयरेज्ज वत्थु जेण कसाया न उठिंति।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 162) 7- जलिओ हु कसायग्गी चरित्तसारं उहिज्जं कसिणं पि। सम्मत्तं पि विराहिय अणंतसंसारियं कुज्जा।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 19) जं अज्जियं चरित्तं देसूणाए वि पुव्वकोडीए। तं पि कसायमित्तो हारेइ नरो मुहुत्तेण ।।
रभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 164) 8- तम्हाहु कसायग्गिं पढमं उप्पज्जमाणयं चेव। इच्छा-मिच्छादुक्क्डचंदणसलिलेण झंपिज्जा।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 20) तम्हा उप्पज्जंतो कसायदावानलो लहुं चेव। इच्छा- मिच्छाउक्कडचंदणसलिलेण विज्झवइ ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 166) 9- विविहतवसोसियंगो वियऽसिरा-न्हारु-पंसुलिकडाहो। संलिहियतणू खवगो अज्झप्परओ हवइ निच्च।।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका, गाथा 32) परिवड्डिओवहाणो वियऽसिरा-व्हारू-पंसुलिकरालो। संलिहियकसाओ वि य दुविहं संलेहणमुवेई ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 167) 10- तं संलिहियतणुतस्स वि खवगस्स परिच्छणं तओ गुरुणा। कायत्वं आराहणमहसागरपारगमणत्थं ।। ।
(प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका,गाथा 25) ता तस्स उत्तमढे काणुच्छाहं परिक्खइ विहिण्णू। खीरोयणदत्वग्गह दुगुंछणाए जहसमाहिं।।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 309)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org