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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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13- एस अखंडियसीलो बहुस्सुओ य अपरोपतावी य। चरणगुण सट्ठिओ त्ति य कित्ती धन्नाण भमइ जए।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका.गाथा 137) एस अखंडियसीलो बहुस्सुओ एस, एस य समट्ठो। चरणगुण सुट्ठिओ त्ति य घणस्साघोसणा भमइ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 124) 14- भयवं अणुग्गहो णे, जं नु सदेहं व पालिया अम्हे। सारण-वारण–पडिचोयणाओ धन्नाहु पाविंति।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 139) भयवं अणुग्गहो णे, जं नियदेहं व पालिया तुमए। सारण-वारण-पडिचोयणाओ धण्णा हु पाविंति।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 230) 15- अम्हे वि खमावेमो जं अन्नाण-प्पमाय-रागेहिं। पडिलोविया हु आणा हिओवएसं करिताणं ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 140) अम्हे वि खमावेमो, जं अण्णाण-प्पमायदोसेणं। पडिलोभिया य आणा हिओवएसं करिताणं 2।।
दाचार्यविरचित आराधनापताका,गा 16- जह बालो जंपतो कज्जमकज्जं च उज्जुवयं भणइ। तं तह आलोएज्जा माया-मयविप्पमुक्को य।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 172) जह बालो जंपंतो कज्जमकज्जं च उज्जुयं भणइ । तं तह आलोयव्वं माया-मयविप्पमुक्केणं।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 332) 17- आयरिय उवज्झाए सीसे साहम्मिए कुल-गणे य । जे मे कया कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 488) आयरिय उवज्झाए, सीसे साहम्मिए कुल-गणे य। जे मे कया कसाया सव्वे तिविहेण खामेमि।।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 434) 18- निज्जवओ आयरिओ संथारगयस्स देइ अणुसळिं। संवेयं निव्वेयं जणयंतो कन्नजावं से।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 568) निज्जमया आयरिआ संथारगयस्स दिति अणुसळिं। संवेयं निव्वेयं जणयंता कन्नजावं से।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा)
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