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साध्वी डॉ. प्रतिभा
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 417) 7- एल-तय-नागकेसर-तमालपत्तं ससक्करं दुद्धं । पाऊणकठियसीयल समाहिपाणं तओ पच्छा।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 101) एल-तय-नागकेसर-तमालपत्तं ससक्करं दुद्धं । पाऊणकढिणसीयल समाहिपाणं इमं पच्छा।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 426) 8- महुरविरेयणमेसो कायव्वो फुप्फलाइदव्वेहिं। पिव्वाविओ उ अग्गी समाहिमे सो सुहं लहइ ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 102) महुरविरेयण मेसो कायव्वो पोप्फलाइदत्वेहिं। विव्वाविओयरग्गी समाहिमेसो सुहं लहइ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 427) 9- अणपालिओ य दीहो, परियाओ वायणा मए दिन्ना। निफाइया य सीसा, इण्हिं साहेमि अप्पाणं ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 112) अणुपालिओ य दीहो परियाओ वायणायमे दिन्ना। निप्फाइया य सीसा, सेयं खलु अप्पणो काउं।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 177) 10- निद्धं महुर गहिरं गाहगपल्हायणणिज्ज पत्थं च। अणुसठिं देइ तहिं गषाहिवइणो गणस्स वि य ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 114) निद्धं महुर गंभीरं गाहगपल्हायणणिज्जमणवज्ज। अणुसढिं देइ गणी गणाहिवइणो गणस्सवि य।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा) 11- नाणम्मि दंसणम्मि य. चरणम्मि चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं स गणहारी।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 122) नाणम्मि दंसणम्मि य, चरणम्मि यतीसु समयसारेसु । चोएइ जो ठवेउं गणमप्पाणं गणहरो सो।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 184) 12- पिंडं उवहिं सिज्जं उग्गम-उप्पायणेसणाईहिं। चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सचरित्ती।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 123) पिंड उवहिं सिज्जं उग्गम-उप्पायणेसणादीहिं। चारित्तरक्खणट्ठा सोहिंतो होइ सचरित्तो।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 185)
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