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प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन
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तुलनात्मक-अध्ययन की दृष्टि से समान एवं आंशिक-भिन्नता वाली गाथाओं को उदधृत कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि वीरभद्र अपनी आराधनापताका की रचना में प्राचीनाचार्यकृत इस आराधनापताका से कितने प्रभावित रहे हैं1- संलेहणा उ दुविहा अभिंतरिया 1 य बाहिरा 2 चेव। अभिंतरा कसाएसु बाहिरा होइ हु सरीरे।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 8) संलेहणा उ दुविहा अभिंतरिया 1 य बाहिरा 2 चेव । अभिंतरा कसाए होइ, अणभिंतरा देहे।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 135) 2- चत्ताारि विचित्ताई विगईनिज्जूहियाइं चत्तारि। संवच्छरे य दुण्णि उ एगंतरियं च आयाम।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 10) चत्तारि विचित्ताई, विगईनिज्जूहियाई चत्तारि। संवच्छरे य दुण्णि उ एगंतरियं च आयाम।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 155) 3- नाइविगिट्ठो य तवो छम्मासे परिमियं च आयामं। अण्णे वि य छम्मासे होइ विगिटुं तवोकम्मं ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 11) ना तिविकिट्ठो य तवो छम्मासे, परिमियं च आयामं। अण्णे वि य छम्मासे होइ विगिळं तवोकम्म।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 156) 4- कप्पाऽकप्पे कुसला समाहिकरणगुज्जया सुयरहस्सा। गीयत्था भगवतो अडयालीसं तु निज्जमया।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 32) कप्पाऽकप्पे कुसला समाहिकरणुज्जया सुयरहस्सा। गीयत्था भगवतो अडयालीसं तु निज्जमया।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 398) 5- किं च तं नोवभुत्तंमे परिणामा सुई सुई ? दिट्ठसारो सुहं झाइ चोयणेसेव सीयओ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 96) किं व तं नोवभुत्तं मे परिणामाऽसुई सुई ?| दिट्ठसारो सुहं झाइ चोयणा अवसीयओ।।
(वीरभद्राचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 418) 6- पासित्तु ताणि कोइ तीर पत्तस्स किं ममेएहिं ? वेइग्गमणुपत्तो संवेगपरायणो होइ।।
(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका,गाथा 98) पासित्तु कोइ ताई तीरं पत्तस्सिमेहिं किं मज्झ ?। वेरग्गमणुप्पत्तो संवेगपरो स चिं तेइ ।।
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