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________________ साध्वी डॉ. प्रतिमा (७) कंदप्पदेवकिदिवस अभिओगा आसुरी य सम्मोहा । एयाओ संकिलिट्ठा, असंकिलिट्ठा हवइ छट्ठा।। (मरणविभक्ति , गाथा 60 ) कंदप्पदेवकिदिवस अभिओगा आसुरी य सम्मोहा । एयाओ संकिलिट्ठा पंचविगप्पाओ पत्तेयं ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 714) (10) कंदप्पकुक्कुयाइय दवसीलो य निच्चहासण कहो उ। विम्हाविंतो य परं कंदप्पं भावणं कुणइ।। (मरणविभक्ति, गाथा 61 ) कंदप्पेकुक्कइए दवसीलत्ते य हासकरणे य । परविम्हयजणणे वि य कदप्पो पंचहा हाई।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 715) (11) नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ साहूणं । माई अवण्णवाई कब्बिसियं भावणं कुणइ ।। (मरणविभक्ति, गाथा 62 ) . (11) सुयनाण केवलीणं धम्मायरियाणं संघ साहूणं । माई अवन्नवाई कब्बिसियं भावणं कुणइ ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 716) (12) उम्मग्गदेसणा नाणदूसणा मग्गविप्पणासो य। मोहेण मोहयंतंसि भावणं जाण सम्मोहं । (मरणविभक्ति, गाथा 65) उम्मग्गदेसणा मग्गदूसणं मग्गविपडिवत्तीय। मोहो य मोहजणणं एवं सा हवइ पंचविहा । __(प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 719) अन्नं इमं सरीरं , अन्नो हं, बंधवा वि मे अन्ने। एवं नाऊण खमं ,कुसलस्स न तं खमं काउं।। (मरणविभक्ति, गाथा 590) (13) अन्नों जीवो, अन्नं इमं सरीरंपि, बंधवा, अवरे। इय अन्नतं चिंतसु, गयसुकुमालो व्व धीर ! तुमं ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 736) ।। गाथागत आंशिक भिन्नता, किन्तु विषयगत आंशिक भिन्नता।। आवश्यकनियुक्ति- आराधनापताका आवश्यकनियुक्ति मुनि-आचार का एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसकी भी एक गाथा हमें आराधनापताका में मिलती है। (1) सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खाई मि अलियवयणं च । सव्वमदत्तादाणं अब्बभ परिग्गहं सव्वहा । (आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1284) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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