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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन (3) (3) (4) (4) (5) (6) (6) (7) (7) (8) अज्झवसाणविसुद्धिविवज्जिया जे तवं विगिट्ठमवि । कुव्वंति बाललेसा न होइ सा केवलं सुद्धिं । (8) ( मरणविभक्ति गाथा 186 ) अज्झवसाणविसुद्धि कसायकलुसियमणस्स नत्थित्ति । अज्झवसाणविसुद्ध कसायसंलेहणा भणिया ।। (5) कडजोगी कालन्नू बुद्धीए चउव्विहाए उववेया । छंदन्नू पव्वइया पच्चखाणम्मि य विहिन्नू ।। साहू कयसंलेहो विजिय परीसह कसाय संताणो । निज्जवए मग्गेज्ज सुयरयण सहस्स निम्माए । ( मरणविभक्ति, गाथा 325) पासत्थोसन्न कुसीलठाण परिवज्जिया उ निज्जवग्गा । पियधम्म वज्जभीरू, गुणसंपन्ना अपरितंता । गत गुणेऽरहिया बुद्धीइ चउव्विहाइ उववेया । छंदण्णू पच्चइया पच्चखणम्मि य विहण्णू | (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका गाथा 16 ) (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 29 ) ( मरणविभक्ति, गाथा 329 ) कप्पाडकप्पविहन्नू दुवालसंगसुयसारही सत्वं । छत्तीसगुणोवेया पच्छित्तविया (सा) रया धीरा ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 31 ) Jain Education International (रणविभक्ति, गाथा 333 ) कप्पाऽकप्पे कुसला समाहिकरणुज्जया सुयरहस्सा । गीयत्था भगवतो अडयालीसं तु निज्जमया । । उक्तण-परिवत्तण उच्चारुस्साव - करणजोगेसुं । दो वायग ति णिज्जा असुन्नकरणे जहन्नेणं । (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 32 ) ( मरणविभक्ति, गाथा 331 ) उक्तण-परियंत्तण-पसारणा - ऽऽकुंचणाइसुं । खवगस्स-समाहाणं करिंति निज्जामगा मुणिणो ।। 61 सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ ! अंजलिं करे सीसे । सव्वं खमावइत्ता खमामि सव्वस्स अहयं पि ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 34 ) ( मरणविभक्ति, गाथा 337 ) सव्वस्स समणसंघस्स भगवओ अंजलि करिय सीसे । अवराहं खामेमी तस्स पसायाभिमुहचित्तो ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका गाथा 489 ) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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