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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 47 सम्बन्ध में जो आलेख हैं, वे उसके छत्तीसवें अध्याय जीवाजीवविभक्ति में हैं. इसमें द्वादश वर्षीय समाधिमरण का भी उल्लेख है। दशवैकालिक- मूल आगमों में दशवैकालिक का तीसरा स्थान है। दशवकालिक का उत्कालिक में प्रथम स्थान है। प्रस्तुत आगम में दस अध्ययन हैं और विकाल में पढ़े जा सकते हैं, इसी कारण इसका नाम दशवैकालिक है तथा इसका रचनाकाल वीर संवत् 72 के लगभग है।। इसके आचार-प्रणिधि नामक अष्टम अध्ययन में समाधिमरण का उल्लेख मिलता है। इस अध्ययन में श्रमणों को पात्र, कम्बल, शय्या, मलमूत्र त्यागने के स्थान, संथारा व आसन के प्रतिलेखन की विधि से अवगत कराया गया है। उन्हें सभी प्रकार के परीषहों को सहन करने का सन्देश दिया है तथा अपने कषायों को अल्प करके समाधिमरण ग्रहण करने का भी निर्देश किया है। श्वेताम्बर-प्रकीर्णक-ग्रन्थों में समाधिमरण बत्तीसवें ज्ञात प्रकीर्णकों की विषय-वस्तु पर शोध-परक लेख-संग्रह के रूप में प्रकाशित हुआ है। इस पुस्तक में डॉ. अशोक सिंह द्वारा लिखित 'समाधिमरण सम्बन्धित प्रकीर्णकों की विषय-वस्तु' शीर्षकीय अत्यन्त सारगर्भित लेख भी सम्मिलित है । इस लेख में विद्वान् लेखक ने समाधिमरण-विषयक इक्कीस प्रकीर्णकों की विषय-वस्तु की समालोचना करते हुए उसे सार-रूप में प्रकट किया है। इस लेख में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि परम्परागत जैन-मान्यता प्रत्येक श्रमण द्वारा एक प्रकोणक रचने का उल्लेख करती है, इसलिए समवायाग-सूत्र में भगवान ऋषभदेव के 84000 शिष्यों द्वारा उतने ही प्रकीर्णकों की रचना करने का उल्लेख मिलता है तथा भगवान् महावीर के तीर्थ में भी उनके 14000 श्रमणों द्वारा इतने ही प्रकीर्णकों की रचना किए जाने की मान्यता है। आलेख में गाथा-संख्या के आरोह-क्रम में समाधिमरण-विषयक प्रकीर्णकों की सूची में केवल आठ गाथा-प्रमाण वाले 'आराधना-कुलकम्' से लगाकर 989 गाथा-प्रमाण वीरभद्राचार्यविरचित 'आराधना-पताका' सम्मिलित है। इसी सूची में इस अध्यययन के आलोच्य ग्रन्थ 932 गाथा-प्रमाण प्राचीनाचार्यविरचित 'आराधना-पताका' का उल्लेख बीसवें क्रम पर किया गया है। आलोच्य ग्रन्थ के अतिरिक्त इस सूची में सम्मिलित समाधिमरण-विषयक मुख्य प्रकीर्णक इस प्रकार (1) आतुर-प्रत्याख्यान-आतुर-प्रत्याख्यान नामक एक ही शीर्षक से प्राप्त होने वाले इन तीन भिन्न-भिन्न प्रकीर्णकों में कुल 135 गाथाएं हैं, जिनमें मरण-संलेखना, मरण-समाधि तथा मरण-विषयक विभिन्न पक्षों की सम्यक् चर्चा की गई है। आतुर-प्रत्याख्यान प्रकीर्णक (प्रथम)- इस ग्रन्थ में यह बताया गया है कि यदि कोई दारुण असाध्य बीमारी से पीड़ित हो, तो गीतार्थ पुरुष प्रतिदिन खाद्य-पदार्थ की मात्रा घटाते हए प्रत्याख्यान करवाते हैं। धीरे-धीरे, जब व्यक्ति आहार के प्रति पूर्ण रूप से अनासक्त हो जाता है, तब उसे भवचरिम-प्रत्याख्यान कराते हैं, अर्थात् जीवन-पर्यन्त आहार-पान का त्याग कराते हैं। यह विश्लेषण जिस ग्रन्थ में है, उसे आतुर–प्रत्याख्यान कहते हैं। इस प्रथम आतुर-प्रत्याख्यान में गद्य-पद्य मिश्रित तीस गाथाएं हैं। 'दशवैकालिकसूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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