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________________ 44 साध्वी डॉ. प्रतिभा इसके द्वितीय अध्ययन के चबुर्थ उद्देशक में समाधिमरण की चर्चा मिलती है। इसमें समाधिमरण के दो रूप- भक्तप्रत्याख्यान और प्रायोपगमनमरण का विवरण उपलब्ध है।' स्थानांगसूत्र के तृतीय अध्ययन या स्थान में मरण के तीन प्रकार भी निरूपित हैं- 1. बालमरण 2. पण्डितमरण और 3. बालपण्डितमरण। इसमें असंयमी जीवों के मरण को बालमरण, संयमियों के मरण को पण्डितमरण तथा संयतासंयत, अर्थात् श्रावकों के मरण को बालपण्डितमरण कहा गया है। इन मरणों का सम्बन्ध लेश्या से जोड़ते हुए स्थानांगसूत्र में कहा गया है कि ये तीनों मरण तीन-तीन प्रकार के होते हैं। बालमरण के तीन प्रकार हैं-1. स्थित-लेश्य, 2. संक्लिष्ट-लेश्य, 3. पर्यवजात-लेश्य। पण्डितमरण में लेश्या संक्लिष्ट नहीं होती, अतः उसके- 1. स्थित-लेश्य, 2. संक्लिष्ट-लेश्य तथा 3. पर्यवजात (विशुद्धि की वृद्धि से युक्त) लेश्य- ये तीन भेद नहीं होते हैं, किन्तु बालपण्डितमरण में 1. स्थित-लेश्य, 2. असंक्लिष्ट-लेश्य तथा 3. अपर्यवजात-लेश्य- ये तीन भेद होते हैं। मरण के विविध प्रकारों का वर्णन निम्न रूप में भी किया गया है बलन्मरण, वशार्त्तमरण, निदानमरण, तदभवमरण, गिरिपतनमरण, तरुपतनमरण, जलप्रवेशमरण, अग्निप्रवेशमरण, विषभक्षणमरण, शस्यावपाटमरण, वैहायसमरण (वैखानसमरण), गिद्धपट्ठमरण या गृद्धस्पृष्टमरण। इसी में, भक्तप्रत्याख्यानमरण और प्रायोपगमनमरण के निर्हारिम एवं अनि रिम- इन दो रूपों पर विचार किया गया है। समवायांग-सूत्र -समवायांगसूत्र के दसवें समवाय' में दस समाधिस्थानों का कथन है, उनमें केवलीमरण को भी समाधि का एक स्थान माना गया है। वहाँ यह कहा गया है कि केवलीमरण साधक को सब प्रकार के दुःखों से रहित कर देता है, इसलिए वह समाधिरूप है। समवायांगसूत्र के सत्रहवें समवाय में जिन सत्रह प्रकार के मरणों का उल्लेख प्राप्त होता है, वे निम्नानुसार हैं 1. अविचिमरण 2. अवधिमरण 3. आत्यन्तिकमरण 4. बलन्मरण 5. वशार्त्तमरण 6. अन्तःशल्यमरण 7. तदभवमरण 8. बालमरण 9. पण्डितमरण 10. बालपण्डितमरण 11. छद्मस्थमरण 12. केवलीमरण 13. वैहायसमरण 14. गृद्धस्पृष्टमरण 15. भक्तप्रत्याख्यानमरण 16. इंगिनीमरण तथा 17. पादपोपगमनमरण। मरण के इन सत्रह प्रकारों में पण्डितमरण, केवलीमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण, इंगिनीमरण और पादपोपगमनमरण का वर्णन भी इसमें समाहित है, जिनका सम्बन्ध समाधिमरण से है। भगवती-सूत्र- (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र) में मरण के प्रकारों में बालमरण एवं पण्डितमरण के दो-दो भेद बतलाए गए हैं। वहाँ पण्डितमरण के प्रायोपगमन एवं भक्तप्रत्याख्यान- ये दो भेद किए 'स्थानांग - द्वितीय स्थान स्थानांग - तृतीय स्थान 'स्थानांगसूत्र - 3 एवं 4, 520-522, पृ. 193 *समवायांग सूत्र, 10 वां समवाय - पृ. 25 'समवायांगसूत्र - 17वां समवाय 6 भगवती सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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