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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 173 173 अध्याय 6 आराधनापताका में उल्लेखित आराधकों की कथाओं का तुलनात्मक-विवरण प्राचीनाचार्यकृत इस आराधनापताका के बत्तीसवें द्वार में समाधिमरण द्वारा मृत्यु को प्राप्त करने वाले कुछ साधकों का उल्लेख है। यद्यपि इस ग्रन्थ में समाधिमरण के उन साधकों का विस्तार से कोई विवेचन तो उपलब्ध नहीं होता है, किन्तु संक्षेप में घटनाक्रम का निर्देश करते हुए उन साधकों के नामों का उल्लेख हमें मिल जाता है। घटनाक्रम के उस अति संक्षिप्त निर्देश से यह पता चल जाता है कि समाधिमरण के उन साधकों ने किस प्रकार किस परिस्थिति में समाधिमरण ग्रहण किया था। यद्यपि इन कथा-निर्देशों में अधिकांशतः तो उन व्यक्तियों के निर्देश हैं, जिन्हें अन्य व्यक्तियों द्वारा उपसर्ग देकर मृत्यु के मुख तक पहुँचाया था, जैसे-स्कन्धक के 500 शिष्यों को पालक ने घाणी में पील दिया था अथवा गज सुखमाल को सोमिल द्विज ने सिर पर अंगारे रखकर मारने का उपक्रम किया था, किन्तु इसके साथ-साथ इसमें ऐसे भी उल्लेख हैं, जिन्होंने वृद्धावस्था में मासिक संलेखना को स्वीकार करके देहत्याग किया था। कहा गया है कि धन्ना एवं शालिभद्र ने वैभार पर्वत पर पादपोगमन-संथारा स्वीकार करके सर्वार्थ-सिद्ध विमान में जन्म धारण किया। इस प्रकार, प्रस्तुत ग्रन्थ में समाधिमरण ग्रहण करने वाले, चाहे उन्हें उपसर्ग के आधार पर देहत्याग करना पड़ा हो, अथवा जिन्होंने वृद्धावस्था में शारीरिक-शक्ति क्षीण हो जाने पर समाधिमरण ग्रहण किया हो, -दोनों ही उल्लेख प्रस्तुत ग्रन्थ में मिल जाते हैं। समाधिमरण ग्रहण करने वाले जिन साधनों का निर्देश हमें प्राचीनाचार्य विरचित इस आराधनापताका में मिलते हैं, उनके कथानक जैन-साहित्य के अन्य ग्रन्थों में भी उपलब्ध होते है, जैसे -गजसुखमाल का कथानक हमें अंतकृत्दशा में उपलब्ध होता है। प्रस्तुत अध्ययन में हमने यह बताने का प्रयास किया है कि समाधिमरण के साधकों के जो निर्देश हमें इस प्राचीनाचार्य-विरचित आराधनापताका में मिलते हैं, वे अन्य ग्रन्थों में भी कहाँ और किस रूप में पाए जाते हैं। इस सन्दर्भ में हमने सर्वप्रथम मूल-कथा को देकर फिर यह बताने का प्रयास किया है कि यह कथानक अन्यत्र किस रूप में उपलब्ध होता है। इस प्रकार, प्रस्तुत अध्याय को हमने तुलनात्मक और शोधपरक बनाने का प्रयास किया है। यद्यपि यहाँ हम सम्पूर्ण कथानकों को तो प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं, किन्तु जिन कथानकों के निर्देश अन्यत्र उपलब्ध हुए हैं, उनकी कथा को संक्षेप में यहाँ देने का प्रयत्न किया गया है। केवल दो-तीन कथानकों को छोड़कर हमें इस प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका के कथानक अन्य ग्रन्थों में भी उपलब्ध हुए। यहाँ तक कि दिगम्बर-परम्परा के भगवती-आराधना और आराधना-कथाकोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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