SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 170 'थॉमस एविबनों' ने कहा कि आत्महत्या करना अपने-आप को धोखा देना है। उनके कथनानुसार आत्महत्या करने वाला व्यक्ति ईश्वर के साथ विश्वासघात करता है, अपने भाग्य के साथ विश्वासघात करता है तथा इस लोक व परलोक में दुःख को प्राप्त करता है ।' 'शापेनहावर' ने आत्महत्या को एक पागलपन कहा है। उसने आगे कहा कि आत्महत्या करने वाला प्राणी मानवता का अपमान करता है तथा अपने जीने की तमन्ना को समाप्त कर देता । अक्सर देखा जाता है, आत्महत्या करने वाले प्राणी के मन में जीने की आकांक्षा रहती है, पर वह जीना चाहते हुए भी भावावेश में आकर आत्महत्या कर लेता है। 2 ' काण्ट' के विचारों से आत्महत्या करने वाला मानव अपनी मानवता का ही तिरस्कार कर देता है। उसकी दृष्टि में आत्महत्या अनैतिक है। इस तरह, हम यह देखते है कि पाश्चात्य-चिन्तकों तथा ईसाई धर्म में ऐच्छिक देहत्याग का विरोध बड़े पैमाने पर हुआ है। इन विरोधों के बाद भी कुछ ऐसी विशेष परिस्थितियां हैं, जिनमें ऐच्छिक - देहत्याग की सहमति ईसाई - परम्परा में भी देखने को मिलती है । सहमति ही नहीं, बल्कि इसके पक्ष में प्रशंसा व समर्थन के स्वर भी सुनाई देते हैं। फ्रांस शासक लुई नवम् ने, आत्महत्या एक समस्या है – इस पर अपने कथ्य को व्यक्त करते हुए आत्महत्या को अभिशाप बताया और इसके विरुद्ध एक कानून बनाया, जिसका मुख्य उद्देश्य आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति पर रोक लगाना था । इस कानून के अनुसार आत्महत्या करने वाले प्राणी की चल-अचल सम्पत्ति राज्य की सम्पत्ति मानी जाती थी। बहुत से अन्य यूरोपीय राज्यों ने फ्रांस के आत्महत्या - विरोधी कानून का अनुसरण किया। वहाँ के शासकों ने भी इसी तरह के मिलते-जुलते कानून अपने राज्यों में लागू किए । साध्वी डॉ. प्रतिभा फ्रांस के लुई चौदहवें ने आत्महत्या विरोधी कानून का पालन पूरी सख्ती से करवाया । स्कॉटलैण्ड में भी आत्महत्या को महापाप कहा जाता है । वहाँ आत्महत्या करने वालों को पड़ोसी का हत्यारा कहकर आत्महत्या के विरुद्ध एक व्यापक जन-अभियान छेड़ा गया। प्रशासन द्वारा आत्महत्या के विरुद्ध व्यापक कानून बनाया गया तथा उनका कठोरता से पालन करवाने का निर्देश दिया गया। इंग्लेण्ड में भी इसे महा - अपराध की श्रेणी में रखते हुए महापाप की संज्ञा देने के साथ-साथ आत्महत्या करने वाले व्यक्ति की सम्पूर्ण सम्पत्ति दण्डस्वरूप राजकोष में जमा कर ली जाने लगी। इसके अलावा दण्डस्वरूप अन्य कई तरह के नियम अपनाए गए। 1598 ई. में एक औरत ने जल में डूबकर आत्महत्या कर ली। उसके शरीर को जलाशय से निकालकर पुनः उसकी लाश को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया। ऐसा मात्र दण्ड देने के लिए नहीं किया गया होगा, बल्कि इसके पीछे यही भावना रही होगी कि व्यक्ति आत्महत्या से बचें। क्योंकि यह इतना बड़ा अपराध है कि मरने के बाद भी मृतक को दण्ड मिलता है। इस प्रकार, सामान्यतया आत्महत्या को अपराध मानते हुए भी ईसाई धर्म के अनुसार व्यक्ति आपातकालीन परिस्थिति में मृत्युवरण कर सकता है। अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने धर्म का परित्याग करने की बात जहाँ उपस्थित हो, अपने पवित्र व नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए। इन go to him, Epicts, Dessert i, ix 16, for detailed studyto see E.R.E. Vol. XII, p. 24. 1 Wester Marck op ii pp 215, 53 2 Mctaphy Mctraphysics be Anfangungagrundeder tungendlebr ckant p. 73 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy