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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन बौद्ध-धर्म में शस्त्रघात द्वारा जो मरण किया जाता है, वह शीघ्रमरण की कामना मुक्ति माना गया है, इसके पीछे उसकी निर्वाण प्राप्ति की भावना रहती है। इस तरह, बौद्धों का मृत्युवरण भी जैनों की ही तरह निर्वाण -प्राप्ति का एक साधन है। ऐसा कहा जा सकता है। ईसाई - परम्परा और समाधिमरण ईसाई धर्म में आत्महत्या और समाधिमरण को लेकर भिन्न-भिन्न प्रकार के दृष्टिकोण मिलते हैं। कुछ विचारकों ने जहाँ इसका समर्थन किया है, वहीं कुछ विचारक इसका विरोध भी करते हैं। जहाँ तक ईसाई धर्म के मूल ग्रन्थ बाईबिल का प्रश्न है, उसमें आत्महत्या का निषेध ही किया गया है, फिर भी इस परम्परा में कुछ ऐसे चिन्तक भी हुए हैं, जिन्होंने मृत्युवरण के सन्दर्भ में अपनी सहमति व्यक्त की है। ईसाई धर्म के मूल ग्रन्थों में तो हमें इस सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं होती है, यद्यपि डॉ. रज्जनकुमार ने अपनी पुस्तक समाधिमरण में ईसाई धर्म के विचारकों के विचार समाधिमरण के सन्दर्भ में प्रस्तुत किए हैं। अनुसार ही इस सन्दर्भ में हम भी यहाँ डॉ. रज्जनकुमार की समाधिमरण नामक पुस्तक कुछ ईसाई - विचारकों के क्या मन्तव्य रहे हैं, इसकी चर्चा करेंगे। इच्छित - मरण ( स्वेच्छिक - मृत्युवरण) का प्रश्न विश्व की सभी परम्पराओं और धर्मों के समक्ष एक विचारणीय प्रश्न रहा है। इस सम्बन्ध में समय-समय पर उन सभी परम्परा के लोगों ने अपने-अपने ढंग से विचार प्रस्तुत किए हैं। कभी उन्होंने इसका समर्थन किया है, तो कभी विरोध भी । ईसाई धर्म के समर्थकों ने भी स्वेच्छिक - मृत्युवरण पर अपने विचार रखे हैं। इस वैज्ञानिक युग में जनसंख्या - वृद्धि के परिणामस्वरूप आत्महत्या भी बढ़ने लगी है, जिसके कारण न केवल व्यक्ति, अपितु समाज और शासन भी बुरी तरह संत्रस्त । इसी कारण से पादरी, धर्मगुरु, राजा, साधारण जनता, शिक्षाविद्, समाज-सुधारक सभी ने इस विषय पर कुछ चिन्तन किया और स्वकथ्य को प्रकट भी किया, किन्तु पाश्चात्य जगत में न केवल वर्त्तमान में, अपितु प्राचीनकाल में भी इस सम्बन्ध में चिन्तन हुआ है। अरस्तू और प्लेटो आत्महत्या की निन्दा करते हुए कहा है कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति समाज एवं राज्य - दोनों का अपराधी है, क्योंकि वह राज्य एवं समाज के बनाए नियमों का उल्लंघन करता है, उनके विचार में आत्महत्या का कभी भी समर्थन नहीं करना चाहिए।' 'सन्त जेरोम' के विचारों के अनुसार ईसाई धर्म पर विश्वास रखने वाले लोगों को आत्महत्या नहीं करनी चाहिए । 169 सन्त मोन्टेन के कथनानुसार आत्महत्या भयंकर अपराध है, जिसके प्रति सहानुभूति के भाव न रखें।' 'इपिक्टस' मृत्युवरण पर, अर्थात् आत्महत्या के प्रति अपनी असहमति व्यक्त करते हैं। उनका कथन है मित्रों! ईश्वर की आज्ञा का इन्तजार करो कि कब वह हमें यहाँ (संसार) से मानव-जाति की सेवा से मुक्त कर अपने पास बुलाता है। जब उसकी आज्ञा हो, तभी ईश्वर के पास पहुँचो, आत्महत्या मत करो, हो सके तो इस घिनौने पाप से बचो । Encyclopaedia of religion Ethics Vol, XII p.n. 30 2 St. Jerome Commentari in Jonem L.P. 12 3 Motaign Essays, II, 3 4-friends: wait for god: when he shall give the signal and release from this service then Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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