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साध्वी डॉ. प्रतिभा
महाप्रस्थान के बारे में कहा गया है कि व्यक्ति को दक्षिण दिशा में सिर्फ वायु और जल के साथ चलना चाहिए, जब तक कि उसका प्राणान्त नहीं हो जाए।'
आत्रिस्मृति में भी इच्छित-मरण की स्वीकृति प्रदान की गई है। इस स्मृति के अनुसार असाध्य बीमारियों से ग्रसित होने पर, वृद्धावस्था के कारण अत्यधिक जर्जर होने पर, या धर्म का सम्पादन करने में असमर्थ होने पर व्यक्ति पहाड़ की ऊँची चोटी से कूदकर, आग में जलकर, या अगाध जल में समाधि लेकर इच्छित मृत्यु वरण कर सकता है।
____ मनुस्मृति में इच्छित-मृत्युवरण का समर्थन करते हुए लिखा गया है कि पुनः ब्राह्मण कुल में तभी जन्म लेता है, जब वह इच्छापूर्वक मृत्युवरण करता है। मृत्युवरण के लिए वह निम्नलिखित साधनों का उपयोग कर सकता है, यथा- नदी की धारा में डूबकर, ऊँचाई से कूदकर, आग में जलकर, अन्न-जल का त्याग करके। यमपुराण में आत्महत्या की निन्दा की गई है तथा यह निर्देश दिया गया है कि आत्महत्या करने वाला व्यक्ति यदि मर जाता है, तो उसके परिवारवालों पर एक-एक पण का दण्ड लगाना चाहिए। यदि वह मरने से बच जाता है, तो शास्त्रों के अनुसार उस पर 200 पण का दण्ड लगाना चाहिए। किन्तु ब्रह्मपुराण में मृत्युवरण का समर्थन करते हुए कहा गया है कि व्यक्ति को हिमालय की कन्दराओं या पहाड़ों में तथा अनेक अन्य तीर्थस्थलों में प्राणान्त तक भटकते रहना चाहिए, क्योंकि महाप्रस्थान के द्वारा मृत्यु प्राप्त करने वाला व्यक्ति स्वर्गलोक का निवासी होता है।
अग्निपुराण में इच्छित-मृत्युवरण का समर्थन करते हुए लिखा गया है- जो व्यक्ति प्रयाग के संगम के पास वटवृक्ष से, या उसकी जड़ों के पास संगम की धारा में डूबकर अपने प्राण त्याग करता है, वह विष्णुलोक में जाता है। मत्स्यपुराण में आत्ममरण या इच्छित-मृत्युवरण पर विस्तृत
'अपरिजितानां वास्थाय व्रजेद्दिशमा नागः। आ निपाताच्छरीरस्य युक्तो वार्यनिलाशनः ।। मनुस्मृति, 6/31 वृद्धः शौचस्मृतेलुप्त प्रत्याख्यातभिष कृक्रियः । आत्मानं घातयेघस्तु भृग्वम्न्यनशनाम्बुः ।। - आत्रि स्मृति, 218 आसां महर्षिचर्याणां व्यक्तदाऽन्यतमया तनुम्। वीत शोकभयो विप्रो बह्मलोके महीयते।। -मनुस्मृतिः, 6/32 एवं 6/17, 31 4 यमपुराण 20/21 5 महापथस्य यात्रा च कर्त्तव्याः तुहिनोपरि।
आश्रित्यं सत्यं च सद्यः स्वर्गप्रदा हि सा।। -बह्मपुराण, उद्धृत तीर्थविवेचन कांडम, पृ. 258 'अग्निपुराण, 111/13, विशेष द्रष्टव्य-धर गास्त्र का इतिहास, भाग-3, पृ. 1336
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