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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 105 मृत्यु अवश्यम्भावी है, इससे बचा नहीं जा सकता है, अतः तप, संयम, समाधि आदि से जीवन को लाभान्वित करना चाहिए। तप, संयम आदि क्रियाओं का अनुष्ठान करते हुए जो शान्तिपूर्वक मृत्यु को प्राप्त करता है, वही समाधिमरण को प्राप्त करता है। महर्षि मृगापुत्र ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप आदि शुद्ध भावनाओं के द्वारा श्रामण्य-धर्म का पालन करते हुए इस अनुत्तरसिद्धि को प्राप्त किया था।' समाधिमरण ग्रहण करने वाला व्यक्ति मृत्यु से घबराता नहीं है। मृत्यु का समय जब निकट होता है, तब वह प्रसन्नचित्त होकर यह कह उठता है- “अहिंसा, सत्य, क्षमा, संतोष की धर्म-साधना के मार्ग पर मैं एक साधक के रूप में चला हूँ और मानव-जीवन के इस स्वर्णिम अवसर का मैंने पूरा-पूरा लाभ उठाया है। आत्म-साधना के नाम पर बहुत कुछ कर लिया है। अब शेष कार्य आगे सम्पन्न करूंगा। जीवनकाल का तो हमने पूरा-पूरा लाभ उठाया है। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी झुकेंगे नहीं। हे मृत्यु ! तेरा स्वागत है, तू मेरे इस अनित्य देह को अपने साथ ले जा और मेरी अमर आत्मा को इससे मुक्त कर दे।" यहाँ व्यक्ति का यह मनोभाव उसकी ज्ञान-भावना तथा मृत्यु और जीवन के प्रति तटस्थता के भाव प्रदर्शित कर रहा है। एकरूपता की यह भावना ही समाधिमरण है। समाधिमरण लेने वाले क्षपक की योग्यता का निर्धारण समाधिमरण जैनधर्म में वर्णित समस्त तपों में श्रेष्ठतम और कठिन तप है। समाधिमरण के इस व्रत को हर व्यक्ति ग्रहण नहीं कर सकता। यह देहासक्ति से मुक्त होने की कठोरतम साधना है। आत्मबल मजबूत होने पर ही व्यक्ति इस दुस्सह मार्ग पर मुस्तैदी से कदम बढ़ा सकता है। इसके लिए कुछ योग्यताएँ निर्धारित की गई है। जिनमें निम्न योग्यताएँ रहती हैं, वे ही महान् आत्माएँ समाधिमरण ग्रहण कर सकती हैं। समाधिमरण की आराधना करने वाले साधक की योग्यता का परीक्षण करने के कुछ निर्देश प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका के द्वितीय परीक्षाद्वार में वर्णित हैं। उसमें कहां गया है कि गुरु को समाधिमरण के इच्छुक साधक की संसार-सागर से पार जाने की क्षमता का परीक्षण करके ही उसे समाधिमरण करवाना चाहिए। जिस साधक में संसार-सागर से पार होन की इच्छा न हो, जो मृत्यु से भयभीत हो और जिसके मन में शरीर और इन्द्रिय-भोगों की आसक्ति रही हुई हो, उसे समाधिमरण के योग्य नहीं मानना चाहिए, अतः समाधिमरण के इच्छुक साधक का परीक्षण आवश्यक । इसी क्रम में, प्रस्तुत कृति के योग्यता-द्वार में यह भी बताया गया है कि समाधिमरण के इच्छुक साधक में क्या-क्या योग्यताएँ होना चाहिए। उन योग्यताओं का निर्देश निम्न रूप में है - जो निर्वाण-सुख चाहता हो, जो विषय-विकारों का त्यागी हो, पारिवारिक-परिजनों से निर्मोही हो, अनेक प्रकार के तप द्वारा शरीर को तपाने वाला हो, इहलोक और परलोक की आकांक्षा उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन 19 2 तह संलिहियतणस्स वि खवगस्स परिच्छणं तओ गरुणा। कायव्वं आराहण महसागर पारगमणत्थं।। -आराधनापताका- द्वितीय द्वार- गाथा- 25 निव्वाणसुहाभिमुहो विसएस परम्मुहो विगयमोहो। परिचत्तसयणनेहो विविहतवोविहिखवियदेहो।। आराधनापताका-द्वार चतुर्थ, गाथा, 44 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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