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________________ प्राचीनाचार्य विरचित आराधनापताका में समाधिमरण की अवधारणा का समालोचनात्मक अध्ययन 89 3 काले विणए बहुमाणे उवहाणे तहा अनिन्हवणे। वंजण अत्थ तदुभए सुयनाणविराहणं वियडे | (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 176) सत्वं पाणारंभं पच्चक्खामि त्ति अलियवयणं च । सत्वमदत्तादाणं मेहुण परिग्गंह चेव ।। - (मूलाचार, गाथा 41) सव्वं पाणारंभं पच्चक्खामि त्ति अलियवयणं च । सत्वमदित्तादाणं मेहुणय परिग्गंह चेव ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 563) सज्झायं कुव्वंतो पंचिंदियसंवुडो तिगुत्तो य । हवदि य एअग्गमणो विणएण समाहिओ भिक्खू ।। (मूलाचार, गाथा 1/410) सज्झायं कुव्वंतो पंचिंदियसंवुडो तिगुत्तो य । भवइ य एगग्गमणो विणएण समाहिओ भिक्खू ।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 591) कोहो माणो माया लोहोणताणुबंधिसण्णा य । अप्पच्चखाण तहा पच्चक्खाणो य संजलणो।। (मलाचार, गाथा 1/234) कोहो माणो माया लोभो चउरो वि हुंति चउभेया । अण- अप्पच्चक्खाणा पच्चक्रवाणा य संजलणा।। (प्राचीनाचार्यविरचित आराधनापताका, गाथा 651) आराधनापताका और भगवती-आराधना प्राचीनाचार्यकृत आराधनापताका की दिगम्बर-परम्परा में उपलब्ध भगवतीआराधना से तुलना करने पर हम देखते हैं कि उसकी इन दोनों ग्रन्थों से बहुत कुछ समानताएं पाई जाती है। सर्वप्रथम तो हम यह देखते हैं कि जहां समाधिमरण-सम्बन्धी श्वेताम्बर-परम्परा के प्राचीन ग्रन्थों का नामकरण आराधना के रूप में नहीं हुआ है, उन्हें संस्तारक, मरणसमाधि , मरणविभक्ति आदि नामों से ही जाना जाता है, किन्तु दिगम्बर-परम्परा में भगवतीआराधना के नामकरण में और श्वेताम्बर-परम्परा में आराधनापताका के नामकरण में आराधना शब्द का प्रयोग समान रूप से हुआ है, इससे ऐसा लगता है कि समाधिमरण और संलेखना को ही कालान्तर में 'आराधना' या 'पर्यन्त-आराधना' के नाम से जाना जाता रहा और इसी कारण इन दोनों ग्रन्थों में 'आराधना शब्द का प्रयोग हुआ। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि श्वेताम्बर-परम्परा में 'पर्यन्त आराधना' नामक एक अन्य कृति भी उपलब्ध होने से कालान्तर में इसे आराधना-पताका के नाम से जाना जाता रहा है। यहां यह भी ज्ञातव्य है कि 'आराधनापताका' नामक अन्य कृति भी है, जो वीरभद्रकृत है और लगभग सम्म नरिंद-देविंदवंदियं वंदिउं जिणं वीरं। भीमभवण्णवहणं पज्जंताराहणं वोच्छं।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003609
Book TitleAradhanapataka me Samadhimaran ki Avadharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratibhashreeji, Sagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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