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________________ सम्यक्-दर्शन तनावों से रहित सुख और शान्तिपूर्ण जीवन जीता है, उसी प्रकार साधक व्यक्ति भी अपने योगक्षेम की समस्त जिम्मेदारियों को परमात्मा पर छोड़कर एक निश्चिन्त, तनावरहित, शान्त और सुखद जीवन जी सकता है। इस प्रकार, तनावरहित, शान्त और समत्वपूर्ण जीवन जीने के लिए सम्यग्दर्शन से या श्रद्धायुक्त होना आवश्यक है। उसी से वह दृष्टि मिलती है, जिसके आधार पर हम अपने ज्ञान को भी सही दिशा में नियोजित कर उसे यथार्थ बना लेते हैं। 7. सन्दर्भ ग्रन्थ1. विशेषावश्यकभाष्य, 1787-90 2. अभिधानराजेन्द्र, खण्ड 5, पृष्ठ 2425 अभिधानराजेन्द्र, खण्ड 5, पृ. 2425 सम प्राब्लेम्स् इन जैन साइकोलाजी, पृ. 32 अभिधानराजेन्द्र, खण्ड 8, पृ. 2525 तत्त्वार्थसूत्र 1/2 उत्तराध्ययन, 28/35 सामायिकसूत्र-सम्यक्त्व-पाठ देखिए, स्थानांग 5/2 आवश्यकनियुक्ति, 1163 जैनधर्म का प्राण, पृ. 24 नन्दिसूत्र, 1/12 13. उत्तराध्ययन, 28/30 आचारांग, 1/3/2 15. सूत्रकृतांग 1/8/22-23 16. अंगुत्तरनिकाय, 1/17 17. वही 10/12 18. मनुस्मृति, 6/74 19. गीता, 17/3 20. वही, 9/20-31 21. गीता (शां.,) 18/12 22. भावपाहुड, 143 23. गीता, 17/3 24. उत्तराध्ययन, 28/16 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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