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________________ अविद्या (मिथ्यात्व) को भिक्षुनियम (विनय) बताना, 4. भिक्षुनियम को अनियम बताना, 5. तथागत (बुद्ध) द्वारा अभाषित को तथागत-भाषित कहना, 6. तथागत द्वारा भाषित को अभाषित कहना, 7. तथागत द्वारा अनाचरित को आचरित कहना, 8. तथागत द्वारा आचरित को अनाचरित कहना, 9. तथागत द्वारा नहीं बनाए हुए (अप्रज्ञप्त) नियम को प्रज्ञप्त कहना, 10. तथागत द्वारा प्रज्ञप्त (बनाए हुए नियम) को अप्रज्ञप्त बताना, 11. अनपराध को अपराध कहना, 12. अपराध को अनपराध कहना, 13. लघु अपराध को गुरु अपराध कहना, 14. गुरु अपराधको लघु अपराध कहना, 15. गम्भीर अपराधको अगम्भीर कहना, 16. अगम्भीर अपराध को निर्विशेषकहना, 19. प्रायश्चित्त योग्य (सप्रतिकर्म) आपत्ति को प्रायश्चित्त के अयोग्य कहना, 20. प्रायश्चित्त के अयोग्य (अप्रतिकर्म) आपत्ति को प्रायश्चित्त के योग्य (सप्रतिकर्म) कहना। __ गीता में अज्ञान- गीता के मोह, अज्ञान या तामस-ज्ञान ही मिथ्यात्व कहे जा सकते हैं । इस आधार पर गीता में मिथ्यात्व का निम्न स्वरूप उपलब्ध होता है - 1. परमात्मा लोक का सर्जन करने वाला, कर्म का कर्ता एवं कर्मों के फल का संयोग करने वाला है, अथवा वह किसी के पाप-पुण्य को ग्रहण करता है, यह मानना अज्ञान है (514-15)12. प्रमाद, आलस्य और निद्रा अज्ञान हैं (14-8)13.धन, परिवार एव दान का अहंकार करना अज्ञान है (16-15)। 4. विपरीत ज्ञान के द्वारा क्षणभंगुर या नाशवान् शरीर में आत्मबुद्धि रखना तामसिक-ज्ञान है (18-22)। इसी प्रकार, असद् का ग्रहण, अशुभ आचरण (16-10) और संशयात्मकता को भी गीता में अज्ञान कहा गया है। ___ पाश्चात्य-दर्शन में मिथ्यात्व का प्रत्यय- मिथ्यात्व यथार्थता के बोध में बाधक तत्त्व है। वह एक ऐसारंगीन चश्मा है, जो वस्तुतत्त्वका अयथार्थ अथवाभ्रान्त रूपही प्रकट करता है। भारत के ही नहीं, पाश्चात्य-विचारकों ने भी सत्य के जिज्ञासु को मिथ्या धारणाओं से परे रहने का संकेत किया है। पाश्चात्य-दर्शन के नवयुग के प्रतिनिधिफ्रांसिस बेकन शुद्ध और निर्दोष ज्ञान की प्राप्ति के लिए मानस को निम्न चार मिथ्या धारणाओं से मुक्त रखने का निर्देश करते हैं। चार मिथ्या धारणाएँ ये हैं - 1. जातिगत मिथ्याधारणाएँ (Idola Trbius)-सामाजिक-संस्कारों से प्राप्त मिथ्या धारणाएँ। 2. व्यक्तिगत मिथ्या विश्वास (Idola Specus)-व्यक्ति के द्वारा बनाई गई ___ मिथ्या धारणाएँ (पूर्वाग्रह)। 3. बाजारू मिथ्या विश्वास (Idola Fori)-असंगत अर्थ आदि। + रंगमंच की भ्रान्ति (Idola Theatri)-मिथ्या सिद्धांत या मान्यताएँ। वे कहते हैं, इन मिथ्या विश्वासों (पूर्वाग्रहों) से मानस को मुक्त कर ही ज्ञान को यथार्थ और निर्दोष रूप में ग्रहण करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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