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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
ग्रन्थों में यत्र-तत्र बिखरा हुआ मिलता है। ये 25 भेद इस प्रकार हैं
(1)धर्मकोअधर्म समझना, (2) अधर्म को धर्म समझना, (3) संसार (बंधन) के मार्ग को मुक्ति का मार्ग समझना, (4) मुक्ति के मार्ग को बन्धन का मार्ग समझना, (5) जड़ पदार्थों को चेतन (जीव) समझना, (6) आत्मतत्त्व (जीव) को जड़ पदार्थ (अजीव) समझना, (7) असम्यक् आचरण करने वालों को साधु समझना, (8) सम्यक् आचरण करने वाले को असाधु समझना, (9) मुक्तात्मा को बद्ध मानना, (10) राग-द्वेष से युक्त को मुक्त समझना।16 (11) आभिग्रहिक-मिथ्यात्व-परम्परागत रूप में प्राप्त धारणाओं को बिनासमीक्षा के अपना लेनाअथवा उससे जकड़े रहना। (12) अनाभिग्रहिक-मिथ्यात्वसत्य को जानते हुए भी उसे स्वीकार नहीं करना, अथवा सभी मतों को समान मूल्य का समझना। (13) आभिनिवेशिक-मिथ्यात्व-अभिमान की रक्षा के निमित्त असत्य मान्यता को हठपूर्वक पकड़े रहना। (14) सांशयिक-मिथ्यात्व-संशयग्रस्त बने रहकर सत्य का निश्चय नहीं कर पाना। (15) अनाभोग-मिथ्यात्व-विवेक अथवा ज्ञान-क्षमता का अभाव ।(16) लौकिक-मिथ्यात्व-लोक-रूढ़ि में अविचारपूर्वक बंधे रहना। (17) लोकोत्तर मिथ्यात्व-पारलौकिक उपलब्धियों के निमित्त स्वार्थवश धर्म-साधना करना । (18) कुप्रवचन-मिथ्यात्व-मिथ्या दार्शनिक-विचारणाओं को ग्रहण करना (19) न्यून मिथ्यात्व-पूर्ण सत्य को आंशिक सत्य अथवा तत्त्वस्वरूप को अंशतः अथवा न्यून मानना। (20) अधिक मिथ्यात्व-आंशिक सत्य को उससे अधिक अथवा पूर्ण सत्य समझ लेना। (21) विपरीत मिथ्यात्व-वस्तुतत्त्व को उसके विपरीत रूप में समझना। (22) अक्रियामिथ्यात्व-आत्मा को एकान्तिक रूप से अक्रिय मानना, अथवा ज्ञान को महत्व देकर आचरण के प्रति उपेक्षा रखना। (23) अज्ञान-मिथ्यात्व-ज्ञान अथवा विवेक का अभाव। (24) अविनय-मिथ्यात्व- पूज्य-वर्ग के प्रति समुचित सम्मान प्रकट न करना, अथवा उनकी आज्ञाओं का परिपालन न करना। (25) आशातना-मिथ्यात्व- पूज्य-वर्ग की निन्दा और आलोचना करना।
अविनय और आशातनाको मिथ्यात्व इसलिए कहा गया कि इनकी उपस्थिति से व्यक्तिगुरुजनों का यथोचित सम्मान नहीं करता है और फलस्वरूप उनसे मिलने वाले यथार्थ बोध से वंचित रहता है।
बौद्ध-दर्शन में मिथ्यात्व के प्रकार-भगवान् बुद्ध ने सद्धर्म की विनाशक कुछ धारणाओं का विवेचन अंगुत्तरनिकाय” में किया है, जो कि जैन-विचारणा के मिथ्यात्व की धारणा के बहुत निकट है। तुलना के लिए यहाँ उनकी संक्षिप्त सूची प्रस्तुत की जा रही है, जिसके आधार पर यह जाना जा सके कि दोनों विचार-परम्पराओं में कितना अधिक साम्य है।
1.धर्म को अधर्म बताना, 2. अधर्म को धर्म बताना, 3. भिक्षु अनियम (अविनय)
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