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________________ उपसंहार 537 प्रकार, उन्होंने नैतिक-जीवन में आचरण के प्रेरक और आचरण के परिणाम-दोनों पर ही बल दिया। मानव-मात्र की समानता का उद्घोष- उस युग की सामाजिक-समस्याओं में वर्ण-व्यवस्था एक महत्वपूर्ण समस्या थी। वर्ण का आधार कर्म और स्वभाव को छोड़कर जन्ममान लिया गयाथा। परिणामस्वरूप, वर्ण-व्यवस्था विकृत हो गई थी और ऊँच-नीच का भेद हो गया था, जिसके कारण सामाजिक-स्वास्थ्य विषमता के ज्वर से आक्रान्त था। जैन-विचारधारा ने जन्मना जातिवाद का विरोध किया और समस्त मानवों की समानता का उद्घोष किया। एक ओर उसने हरिकेशी बल जैसे निम्न कुलोत्पन्न को, तो दूसरी ओर गौतम जैसे ब्राह्मण कुलोत्पन्न साधकों को अपने साधना-मार्ग में समान रूप से दीक्षित किया।न केवल जातिगत विभेद, वरन् आर्थिक-विभेद भी साधना की दृष्टि से उसके सामने कोई मूल्य नहीं रखता। जहाँ एक ओर मगध सम्राट, तो दूसरी ओर पुणिया जैसे निर्धन श्रावक उसकी दृष्टि में समान थे। इस प्रकार, उसने जातिगत आधार पर ऊँच-नीच का भेद अस्वीकार कर मानव-मात्र की समानता पर बल दिया। ईश्वरवाद से मुक्ति-उस युग की दूसरी समस्या यह थी कि मानवीय-स्वतंत्रता का मूल्य लोगों की दृष्टि से कम आँका जाने लगाथा। एक ओर ईश्वरवादी-धारणाएँ, तो दूसरी ओर कालवादी एवं नियतिवादी-धारणाएँ मानवीय-स्वतन्त्रता को अस्वीकार करने लगी थीं। जैन आचार-दर्शन ने इस कठिनाई को समझा और मानवीय-स्वतंत्रता की पुनः प्राणप्रतिष्ठा की। उसने यह उद्घोष किया कि न तो ईश्वर और न अन्य शक्तियाँ मानव की निर्धारक हैं, वरन् मनुष्य स्वयं ही अपना निर्माता है। इस प्रकार, उसने मनुष्य को ईश्वरवाद की उस धारणा से मुक्ति दिलाई, जो मानवीय-स्वतंत्रता का अपहरण कर रही थी और यह प्रतिपादित किया कि मानवीय-स्वतन्त्रता में निष्ठा ही नैतिक-दर्शन का सच्चा आधार बन सकती है। रूढ़िवाद से मुक्ति-जैन आचार-दर्शन ने रूढ़िवाद से भी मानव-जाति को मुक्त किया। उसने उस युग की अनेक रूढ़ियों, जैसे-पशु-यज्ञ, श्राद्ध, पुरोहितवाद आदि से मानव-समाज को मुक्त करने का प्रयास किया था और इसलिए इन सबका खुला विरोध भी किया। ब्राह्मण-वर्ग ने अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि बताकर सामाजिक-शोषण का जो सिलसिला प्रारम्भ किया था, उसे समाप्त करने के लिए जैन एवं बौद्ध-परम्परा ने खुला विद्रोह किया, लेकिन जैन-परम्परा का यह विद्रोह पूर्णतया अहिंसक था। जैन और बौद्धआचार्यों ने अपने इस विरोध में सबसे महत्वपूर्ण काम यह किया कि अनेक प्रत्ययों को नई परिभाषाएँ दी गईं। यहाँ जैन-दर्शन के द्वारा प्रस्तुत ब्राह्मण, यज्ञ आदिकी कुछ नई परिभाषाएँ दी जा रही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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