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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
अन्तर्मुखी आत्मा को पण्डित, मेधावी, धीर, सम्यक्त्वदर्शी और अनन्यदर्शी के नाम से चित्रित किया गया है। अनन्यदर्शी शब्द ही उनकी अन्तर्मुखता को स्पष्ट कर देता है। इनके लिए मुनिशब्द का प्रयोग भी हुआ है। आचारांग के अनुसार, ये वे लोग हैं, जिन्होंने संसार के स्वरूप को जानकर लोकेषणा का त्याग कर दिया है। पापविरत एवं सम्यक्दर्शी होना ही अन्तरात्मा का लक्षण है। इसी प्रकार, आचारांग में मुक्त आत्मा के स्वरूप का विवेचन भी उपलब्ध होता है। उसे विमुक्त, पारगामी तथा तर्क और वाणी से अगम्य बताया गया है।
आत्मा के इस त्रिविध वर्गीकरण का प्रमुख श्रेय तो आचार्य कुन्दकुन्द को ही जाता है। परवर्ती सभी दिगम्बर और श्वेताम्बर-आचार्यों ने इन्हीं का अनुकरण किया है। कार्तिकेय, पूज्यपाद, योगीन्दु, हरिभद्र, आनन्दघन और यशोविजय आदि सभी ने अपनी रचनाओं में आत्मा के उपर्युक्त तीन प्रकारों का उल्लेख किया है - 5
1. बहिरात्मा-जैनाचार्य ने उस आत्मा को बहिरात्मा कहा है, जो सांसारिक विषय-भोगों में रुचि रखता है, परपदार्थों में अपनत्व का आरोपण कर उनके भोगों में आसक्त बना रहता है। बहिरात्मा देहात्म-बुद्धि और मिथ्यात्व से युक्त होता है। यह चेतना की विषयाभिमुखी प्रवृत्ति है।
2. अन्तरात्मा-बाह्य-विषयों से विमुख होकर अपने अन्तर में झांकनाअन्तरात्मा का लक्षण है । अन्तरात्मा आत्माभिमुख होता है एवं स्व-स्वरूप में निमग्न रहता है। यह ज्ञाता-द्रष्टा भाव की स्थिति है। अन्तर्मुखी आत्मा देहात्म-बुद्धि से रहित होता है, क्योंकि वह आत्मा और शरीर, अर्थात् स्व और पर की भिन्नता को भेदविज्ञान के द्वारा जान लेता है।' अन्तरात्मा के भी तीन भेद किए गए हैं । अविरतसम्यक्दृष्टि सबसे निम्न प्रकार का अन्तरात्मा है। देशविरत गृहस्थ, उपासक और प्रमत्त मुनि मध्यम प्रकार के अन्तरात्मा हैं और अप्रमत्त योगी या मुनि उत्तम प्रकार के अन्तरात्मा हैं। ___3. परमात्मा-कर्ममलसे रहित राग-द्वेष का विजेता, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी आत्मा को परमात्मा कहा गया है। परमात्मा के दो भेद किए गए हैं- अर्हत् और सिद्ध । जीवन्मुक्त आत्मा अर्हत् कहा जाता है और विदेहमुक्त आत्मा सिद्ध कहा जाता है।'
कठोपनिषद् में भी इसी प्रकार आत्मा के तीन भेद किए गए हैं - उसमें ज्ञानात्मा, महात्माऔर शान्तात्मा-ऐसे तीन भेद किए गए हैं। तुलनात्मक-दृष्टि से ज्ञानात्मा बहिरात्मा, महदात्मा अन्तरात्मा और शान्तात्मा परमात्मा है।
मोक्षप्राभृत, नियमसार, रयणसार, योगसार, कार्तिकेयानुप्रेक्षा आदि सभी में तीनों प्रकार की आत्माओं के यही लक्षण किए गए हैं।
आत्मा की इन तीनों अवस्थाओं को क्रमश: 1. मिथ्यादर्शी-आत्मा, 2. सम्यग्दर्शी
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