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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
धैर्य प्रदान करती है। जब साधक विचारपूर्वक संसार में व्याप्त दुःख और कष्टों के विकराल स्वरूप को देखता है, तोअपेक्षाकृत रूप में उसे अपना दुःख कम दिखाई देता है। इस प्रकार, उसे एक प्रकार का आत्म-संतोष और धैर्य मिल जाता है। दूसरे, जरा और मृत्यु से घिरे हुए संसार का स्वरूप साधक को भविष्य में धर्माचरण करेंगे, ऐसे मिथ्या विश्वास से छुड़ाकर सदैव ही धर्म-साधना में तत्पर रहने का संदेश देता है। महाभारत में कहा गया है कि जिस रात के बीतने पर मनुष्य कोई शुभ कर्म न करे, उस दिन को विद्धान् पुरुष व्यर्थ ही गया समझे, कल किया जानेवाला काम आजही पूरा कर लेना चाहिए। जिसे सायंकाल में करना है, उसे प्रातःकाल में ही कर लेना चाहिए, क्योंकि मौत यह नहीं देखती कि इसका काम अभी पूरा हुआ या नहीं। 155 उत्तराध्ययनसूत्र में भी यही कहा गया है कि जो रात्रियाँ बीत रही हैं, वे वापस नहीं आती, धर्म करनेवालों की वे रात्रियाँ सफल ही होती हैं और अधर्म करनेवालों की वे रात्रियाँ व्यर्थ जाती हैं। जिसकी मृत्यु से मित्रता हो, जिसमें मृत्यु से भागकर छूटने की शक्ति हो, अथवा जो यह भी जानता हो कि मैं नहीं मरूँगा, वह मनुष्य कल की इच्छा कर सकता है। 156 संसार की दुःखमयता का यह चिन्तन ही बौद्ध-दर्शन का प्रथम आर्य सत्य (सर्वदुःखम्) है।
7. आसव-भावना-बंधन के कारणों पर विचार करना आसव-भावना है। कर्मबन्धका मूल कारण आस्रव है और आम्रव कायिक-वाचिक और मानसिक-प्रवृत्ति, राग-द्वेष के भाव, कषाय, विषय-भोग, प्रमाद, अविरति, मिथ्यात्व और आर्तरौद्र-ध्यान है। साधक इस सम्बन्ध में विचार करे कि अशुभ वृत्तियाँ एवं आचरण आत्मा को किस प्रकार विकार-युक्त बना देते हैं। आस्रव के कारण का विचार और उन कारणों के निरोध का प्रयास ही आम्रव-भावना का मुख्य लक्ष्य है। आस्रव-भावना का साधक पच्चीस मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ उपकषाय, बारह अव्रत, पांच प्रमाद, पंद्रह योग आदिआम्रव के कारणों के स्वरूप का विचार करता हुआ उनसे दूर रहने का प्रयत्न करता है।
बौद्ध-परम्परा में आम्रव-भावना- आम्रव-भावना के सम्बन्ध में बुद्ध का कहना है कि जो कर्त्तव्य को बिना किए छोड़ देते हैं और अकर्त्तव्य करते हैं, ऐसे उद्धत तथा प्रमत्त लोगों के आस्रव बढ़ जाते हैं, परन्तु जिनकी चेतना शरीर के प्रति जागरूक रहती है, जो अकरणीय आचरण नहीं करते और निरन्तर सदाचरण करते हैं, ऐसे स्मृतिमान् और सचेत मनुष्यों के आस्रव नष्ट हो जाते हैं। आस्रव-भावना की तुलना बौद्ध आचार-दर्शन के द्वितीय आर्यसत्य दुःख के कारण के विचार से की जा सकती है।
8. संवर-भावना-संवर-भावना में आस्रव के विपरीत कर्मों के आगमन को रोकने के उपायों पर विचार किया जाता है। संवर-भावना आसव-भावना का विधायकपक्ष है। आचार्य हेमचन्द्र का कथन है कि जो-जो आस्रव जिस-जिस उपाय से रोका जा
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