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________________ जैन-आचार के सामान्य नियम 463 पुत्र, न पिता, न बन्धुआ सकते हैं। किसी सम्बन्धी से रक्षा नहीं हो सकती। इस तरह, मृत्यु के वश में सबको जानकर सम्यक् अनुष्ठान करने वाला बुद्धिमान् पुरुष शीघ्र ही निर्वाण के मार्ग को साफ करे। 146 अंगुत्तरनिकाय में कहा है कि अल्प-आयु जीवन को (खींचकर) ले जाती है। बुढ़ापे द्वारा (खींचकर) ले जाए जाने वाले के लिए कोई शरण-स्थान नहीं है। मृत्यु के इस भय-भीत स्वरूप को देखकर मनुष्य को चाहिए कि वह सुखदायक पुण्य-कर्म करे।147 महाभारत में अशरण-भावना-महाभारत में भीअशरणता का वर्णन उपलब्ध है। जैसे सोए हुए मृग को बाघ उठा ले जाता है, उसी प्रकार पुत्र और पशुओं से सम्पन्न एवं उन्हीं में मन को फँसाए रखने वाले मनुष्य को एक दिन मृत्यु आकर उठा ले जाती है। जब तक मनुष्य भोगों से तृप्त नहीं होता, संग्रह ही करता रहता है, तभी उसे मौत आकर ले जाती है, वैसे ही, जैसे व्याघ्र पशु को ले जाता है। 148 अशरण-भावना का प्रमुख उद्देश्य धन, पुत्र, परिवार की आसक्ति को समाप्त कर आत्म-साधना की दिशा में आगे बढ़ने का संदेश देना 6.संसार-भावना-संसार की दुःखमयता का विचार करना संसार-भावना है । उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है, 'जन्म दुःखमय है, बुढ़ापा दुःखमय है, रोग और मरण भी दुःखमय हैं, यह सम्पूर्ण संसार दुःखमय है, जिसमें प्राणी क्लेश को प्राप्त हो रहे हैं। 149 यह लोक मृत्यु से पीड़ित है, जरा से घिरा हुआहै और रात-दिनरूपी शस्त्र-धारा से त्रुटित कहा गया है।'150 बौद्ध-परम्परा में संसार-भावना-बुद्ध का वचन है कि जैसे मनुष्य पानी के बुलबुले को देखता है और जैसे वह मृगमरीचिका को देखता है, वैसे वह इस संसार को देखे। इस प्रकार देखनेवाले को यमराज नहीं देखता। 151 यह हँसना कैसा और यह आनन्द कैसा, जब चारों तरफ बराबर आग लगी हुई है ? अंधकार से घिरे हुए तुम लोग प्रकाश को क्यों नहीं खोजते हो ? 152 ___ महाभारत में संसार-भावना-महाभारत में भीष्म पितामह ने कहा है कि वत्स! जब धन नष्ट हो जाए, अथवा स्त्री, पुत्र या पिता की मृत्यु हो जाए, तब यह संसार कैसा दुःखमय है, यह सोचकर मनुष्य शोक को दूर करने वाले शम-दम आदिसाधनों का अनुष्ठान करे। 153 यह सम्पूर्ण जगत् मृत्यु के द्वारा मारा जारहा है। बुढ़ापे ने इसे चारों ओर से घेर रखा है और ये दिन-रात प्राणियों की आयु का अपहरण करके व्यतीत हो रहे हैं, इस बात को आप समझते क्यों नहीं हैं ? 154 इस दुःखपूर्ण स्थिति को देखकर संसार के आवागमन से मुक्त होने का प्रयास करना ही इस भावना का सार है। लोक की दुःखमयतामनुष्य को दुःखद परिस्थिति में भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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