SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 448 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन आचार-दर्शन की मान्यता है कि यदि श्रमण-साधक पक्षान्त तक अपने क्रोध को शान्त कर क्षमायाचना नहीं कर लेता है, तो उसका श्रमणत्व समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार, गृहस्थउपासक यदि चार महीने से अधिक अपने हृदय में क्रोध के भाव बनाए रखता है और जिसके प्रति अपराध किया है, उससे क्षमा याचना नहीं करता, तो वह गृहस्थ-धर्म का अधिकारी नहीं रह पाता है। इतना ही नहीं, जो व्यक्ति एक वर्ष से अधिक तक अपने क्रोध की तीव्रता को बनाए रखता है और क्षमायाचना नहीं करता, वह सम्यक् - श्रद्धा का अधिकारी भी नहीं होता है और इस प्रकार, जैनत्व से भी च्युत हो जाता है। बौद्ध-परम्परा में क्षमा-बौद्ध-परम्परा में भी क्षमा का महत्व निर्विवाद है। कहा गया है कि आर्य विनय के अनुसार इससे उन्नति होती है, जो अपने अपराध को स्वीकार करता है और भविष्य में संयत रहता है। संयुत्तनिकाय में कहा है किक्षमा से बढ़कर अन्य कुछ नहीं है। 71 क्षमा ही परम तप है। 2 आचार्य शान्तिरक्षित ने क्षान्ति पारमिता (क्षमाधर्म) का सविस्तार सजीव विवेचन किया है, वे लिखते हैं-द्वेष के समान पाप नहीं है और क्षमा के समान तप नहीं है, इसलिए विविध प्रकार के यत्नों से क्षमा-भावना करनी चाहिए। वैदिक-परम्परा में क्षमा-वैदिक-परम्परा में भी क्षमा का महत्व माना गया है । मनु ने दसधर्मों में क्षमा को धर्म माना है। गीता में क्षमा को दैवी-सम्पदा एवं भगवान् की ही एक वृत्ति कहा गया है। 4 महाभारत के उद्योग-पर्व में क्षमा के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन है। उसमें कहा गया है कि क्षमा असमर्थ मनुष्यों का गुण है तथा समर्थ मनुष्यों का भूषण है। हे राजन् ! ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग के भी ऊपर स्थान पाते हैं - एक, शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करनेवाला और दूसरा, निर्धन होने पर भी दान देने वाला। क्षमा द्वेष को दूर करती है, इसलिए वह एक महत्वपूर्ण सद्गुण है। 2. मार्दव मार्दव काअर्थ विनीतता या कोमलता है। मान-कषाय या अहंकार को उपशान्त करने के लिए मार्दव (विनय) धर्म के पालन का निर्देश है। विनय अहंकार का प्रतियोगी है व उससे अहंकार पर विजय प्राप्त की जाती है। 7 उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि धर्म का मूल विनय है।" उत्तराध्ययन एवं दशवैकालिक में विनय का विस्तृत विवेचन है। जैन-परम्परा में अविनय का कारण अभिमान कहा गया है। अभिमान आठ प्रकार का है - (1) जातिमद-जातिका अहंकार करना, जैसे मैं ब्राह्मण हैं, मैं क्षत्रिय हैं, अथवा उच्च वर्ण का हूँ. उच्च जाति के अहंकार के कारण निम्न जाति के लोगों के प्रति घृणा की वृत्ति उत्पन्न होती है और परिणामस्वरूप सामाजिक-जीवन में एक प्रकार की दुर्भावना और विषमता उत्पन्न होती है। (2) कुल-मद-परिवार की कुलीनता का अहंकार करना। कुल-मद व्यक्ति को दो तरह से नीचे गिराता है। एक तो यह कि जब व्यक्ति में कुल का अभिमान जाग्रत होता है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy