________________
414
भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
प्रायश्चित्त का विधान करता है। पारांचिक-प्रायश्चित्त का विधान सामान्यतया संघ की अनुमति से किया जाता है।184 बौद्ध-परम्परा में प्रायश्चित्त-विधान
जैन-परम्परा के समान बौद्ध-परम्परा में भी भिक्षुओं के द्वारा विभिन्न नियमों को भंग करने पर प्रायश्चित्त का विधान है। सामान्यतया, बौद्ध-परम्परा में आठ प्रकार के प्रायश्चित्तों का विधान उपलब्ध होता है - 1. पाराजिक, 2. संघादिशेष, 3. नैसर्गिक और 4. पाचित्तिय 5. अनियत, 6. प्रतिदेशनीय, 7. सेखिय, 8. अधिकरण-समय।
___पाराजिक-प्रायश्चित्त प्रमुख रूप से हिंसा और चोरी के लिए दिया जाता है। बौद्ध-परम्परा में भी पाराजिक-प्रायश्चित्त में व्यक्ति भिक्षु-संघ से पृथक् कर दिया जाता है। सामान्यतया, पाराजिक-प्रायश्चित्त के योग्य अपराध निम्न हैं- 1. संघ में रहकर मैथुन-सेवन करना, 2. बिनादी हुई वस्तु ग्रहण करना, जिससे चोर समझा जाए, 3. मनुष्य आदि की हत्या करना और 4. बिना जाने और देखे अलौकिक बातों का दावा करना। जैन और बौद्ध-परम्पराओं में पाराचिक एवं पाराजिक-प्रायश्चित्त के संबंध में समान दृष्टिकोण
जिस प्रकार जैन-परम्परा में अनवस्थाप्य-प्रायश्चित्त का विधान है, उसी प्रकार बौद्ध-परम्परा में संघादिशेष-प्रायश्चित्त का विधान है। बौद्ध-परम्परा में संघादिशेष आपत्ति होने पर भिक्षु को संघ के सन्तोष के लिए भिक्षु-आवास के बाहर कुछ रातें बितानी होती है
और उसके पश्चात् उसे भिक्षु-संघ में पुनः प्रवेश दिया जाता है। इस प्रकार, अपने मूल मन्तव्य की दृष्टि से अनवस्थाप्य-प्रायश्चित्त और संघादिशेष-प्रायश्चित्त समान ही हैं। बौद्ध-परम्परा में संघादिशेष-प्रायश्चित्त के योग्य निम्न 13 आपत्तियाँ मानी गई हैं -
1. निद्रावस्था को छोड़कर अन्य किसी अवस्था में वीर्यपात करना। 2. वासना के वशीभूत होकर स्त्री-शरीर का स्पर्श करना।
3. वासना के वशीभूत होकर कामुक शब्दों से स्त्री की काम-वासना को प्रदीप्त करना।
4. यह कहना कि मुझ जैसे धार्मिक-पुरुष से संभोग करना उचित है। 5. स्त्री एवं पुरुषों के मध्य काम-संबंध स्थापित करने के लिए मध्यस्थता करना।
6. भिक्षु-संघ की स्वीकृति के बिना सीमा से बड़ी, भययुक्त एवं बिना खुली जगह में कुटिया निर्माण करना।
___7. अपने और दूसरों के लिए बिना भिक्षु-संघ की स्वीकृति के भययुक्त एवं बिना खुली जगह में भिक्षु-आवास का बनवाना।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org