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________________ श्रमण-धर्म 397 का विधान नहीं था। दीक्षा ग्रहण करने के दिन से ही व्यक्ति को श्रमण-संस्था में प्रवेश दे दिया जाता था, लेकिन महावीर ने इन दो दीक्षाओं का विधान किया और छेदोपस्थापनाचारित्र के आधार पर ही श्रमण-संघ में व्यक्ति की ज्येष्ठता और कनिष्ठता निर्धारित की। __(8) प्रतिक्रमण-कल्प - प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल प्रतिक्रमण करना प्रतिक्रमण-कल्प है। महावीर के पूर्व तक पार्श्वनाथ की परम्परा में दोष लगने पर ही प्रायश्चित्तस्वरूप प्रतिक्रमण किया जाता था। महावीर ने दोनों समय प्रतिक्रमण करना अनिवार्य बना दिया। (9) मास-कल्प- श्रमण के लिए सामान्य नियम यह है कि वह ग्राम में एक रात्रि और नगर में पाँच रात्रि से अधिक न ठहरे, लेकिन महावीर ने श्रमण के लिए अधिक से अधिक एक स्थान पर एक मास तक ठहरने की अनुमति प्रदान की और एक मास से अधिक ठहरना निषिद्ध बताया। साध्वियों के लिए यह मर्यादा दो मास मानी गई है। यह मर्यादा चातुर्मास-काल को छोड़कर शेष आठ मास ही के लिए है। वस्तुतः, सतत भ्रमण से ही जहां एक ओर अनासक्तवृत्ति बनी रहती है, वहीं दूसरी ओर, अधिकाधिक जनसंपर्क और जन-कल्याण भी संभव होता है। (10) पर्युषण-कल्प-चातुर्मास-काल में एक स्थान पर रहकर तप, संयम और ज्ञान की आराधना करना पyषण-कल्प है। चातुर्मास-काल में स्थित मुनि को इसके लिए विशेष प्रयत्न करना चाहिए। बौद्ध-परम्परा और कल्पविधान- जैन-परम्परा के दस कल्पों को प्रकारान्तर से बौद्ध-परम्परा में भी खोजा जा सकता है। जैन-परम्परा के आचेलक्य-कल्प का अर्थ यदिश्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार अल्प वस्त्र धारण किया जाता है, तो वह बौद्ध-परम्परा में भी स्वीकृत है। बौद्ध भिक्षु दीक्षित होने के समय ही यह निश्चय करता है कि मैं अल्प एवं जीर्ण वस्त्रों में ही संतुष्ट रहूँगा।16 बुद्ध ने भिक्षु के लिए मर्यादा से अधिक वस्त्र रखने का निषेध कियाहै। जहाँ तक औद्देशिक-कल्प का प्रश्न है, बुद्ध ने केवल औद्देशिक-प्राणीहिंसा से निर्मित मांस आदि के आहार को ही निषिद्ध माना है। सामान्य भोजन, वस्त्र-पात्र तथा आवास के सम्बन्ध में बुद्ध औद्देशिकता को स्वीकार नहीं करते हैं। उन्होंने उसे ऐसे भोजन, वस्त्र-पात्र एवं आवास को ग्रहण योग्य माना है। वे निमंत्रित भोजन को निषिद्ध नहीं मानते हैं। शय्यातर और राजपिण्ड-कल्प के सम्बन्ध में जैन और बौद्ध-परम्पराएँ समान दृष्टिकोण रखती हैं। बौद्ध-परम्परा में भी दीक्षा-वय में ज्येष्ठ भिक्षु के आने पर उसके सम्मान में खड़ा होना तथा ज्येष्ठ भिक्षुओं को वंदन करना अनिवार्य है। इतना ही नहीं, बुद्ध ने दीक्षावृद्ध श्रमणी के लिए भी छोटे-बड़े सभी भिक्षुओं को वन्दन करने का विधान किया है। भिक्षुणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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