SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 378
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारतीय आचार- दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन अनुमति है । बाह्य परिग्रह की दृष्टि से श्वेताम्बर और दिगम्बर- परम्पराओं में किंचित मतभेद हैं। 376 - दिगम्बर- परम्परा के अनुसार, श्रमण की आवश्यक वस्तुओं (उपधि) को तीन भागों में बाँटा जा सकता है - 1. ज्ञानोपधि ( शास्त्र - पुस्तक आदि), 2. संयमोपधि (मोर के परों से बनी पिच्छि), 3. शौचोपधि (शरीर-शुद्धि के लिए जल ग्रहण करने का पात्र या कमण्डलु) 62। दिगम्बर- परम्परा के अनुसार, मुनि को वस्त्र आदि अन्य सामग्री के रखने का निषेध है। श्वेताम्बर-परम्परा के मूल-आगमों के अनुसार, भिक्षु चार प्रकार की वस्तुएँ रख सकता है - 1. वस्त्र, 2. पात्र, 3. कम्बल और 4. रजोहरण । 63 आचारांगसूत्र के अनुसार, स्वस्थ मुनि एक वस्त्र रख सकता है, साध्वियों का चार वस्त्र रखने का विधान है। इसी प्रकार, मुनि एक से अधिक पात्र नहीं रख सकता। 64 आचारांग में मुनि के वस्त्रों के नाप सन्दर्भ में कोई स्पष्ट वर्णन नहीं है, यद्यपि साध्वी के लिए चार वस्त्रों में एक दो हाथ का, दो तीन हाथ के और एक चार हाथ का होना चाहिए। प्रश्न- व्याकरणसूत्र में मुनि के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है - 1. पात्र - जो कि लकड़ी, मिट्टी अथवा तुम्बी का हो सकता है, 2. पात्रबन्ध- पात्रों को बाँधने का कपड़ा, 3. पात्र स्थापना - पात्र रखने का कपड़ा, 4. पात्र - केसरिका - पात्र पोंछने का कपड़ा, 5. पटल-पात्र ढँकने का कपड़ा, 6. रजस्त्राण, 7. गोच्छक, 8-10 प्रच्छादक- ओढ़ने की चादर, मुनि विभिन्न नापों की तीन चादरें रख सकता है, इसलिए ये तीन उपकरण माने गए हैं, 11. रजोहरण, 12. मुखवस्त्रिका, 13. मात्रक और 14. चोलपट्ट । '' ये चौदह वस्तुएँ रखना श्वेताम्बर - मुनि के आवश्यक हैं, क्योंकि इनके अभाव में वह संयम का पालन समुचित रूप से नहीं कर सकता । बृहद्कल्पभाष्य एवं परवर्ती ग्रन्थों में उपर्युक्त सामग्रियों के अतिरिक्त भी चिलमिलिका (पर्दा), दण्ड, छाता, पादप्रोंछन, सूचिका (सुई) आदि अनेक वस्तुओं के रखने की अनुमति है । विस्तार भय से उन सबकी चर्चा में जाना आवश्यक नहीं है। वस्तुतः, ऐसा प्रतीत होता है कि जब एक बार मुनि के आवश्यक उपकरणों में अहिंसा एवं संयम की रक्षा के लिए वृद्धि कर दी गई, तो परवर्ती आचार्यगण न केवल संयम की रक्षा के लिए, वरन् अपनी सुखसुविधाओं के लिए भी मुनि के उपकरणों में वृद्धि करते रहे हैं। इतना ही नहीं, कभी-कभी तो कमजोरियों के दबाने तथा भोजन- -वस्त्र की प्राप्ति के निमित्त भी उपकरण रखे जाने लगे। परतीर्थिक उपकरण, गुलिका, खोल आदि इसके उदाहरण हैं 106 वस्तुतः, जैन - श्रमण के लिए जिस रूप में आवश्यक सामग्री रखने का विधान है, उसमें संयम की रक्षा ही प्रमुख है। उसके उपकरण धर्मोपकरण कहे जाते हैं, अतः मुनि को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy