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________________ भारतीय आचार - दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन होता है । श्रमण - जीवन में अहिंसा - महाव्रत का परिपालन किस प्रकार होना चाहिए, इसकी संक्षिप्त रूपरेखा दशवैकालिकसूत्र में मिलती है। उसमें कहा गया है कि समाधिवंत साधु तीकरण एवं तीन योग से पृथ्वी आदि सचित्त मिट्टी के ढेले आदि न तोड़े, न उन्हें पीसे, सजीव पृथ्वी पर एवं सचित्त धूलि से भरे हुए आसन पर नहीं बैठे; यदि उसे बैठना हो, तो अचित्त भूमि पर आसन आदि को यतना से प्रमार्जित करके बैठे। संयमी साधु सचित्त जल, वर्षा, ओले, बर्फ और ओस के जल को भी नहीं पीए, किन्तु जो तपा हुआ या सौवीर आदि अचित्त धोवन (पानी) को ही ग्रहण करे। किसी प्रकार की अग्नि को साधु उत्तेजित नहीं करे, छुए नहीं, सुलगाए नहीं तथा उसको बुझाए भी नहीं । इसी प्रकार, साधु किसी प्रकार की हवा नहीं करे तथा गरम पानी, दूध या आहार आदि को फूंक से ठंडा भी न करे । साधु तृणों, वृक्षों तथा उनके फल, फूल, पत्ते आदि को तोड़े नहीं, काटे नहीं, लता-कुंजों बैठे। इस प्रकार, साधु त्रस - प्राणियों में भी किसी जीव की मन, वचन और काय से हिंसा न करे | 25 पूर्णरूपेण हिंसा से बचने के लिए साधु को यही निर्देश दिया गया है कि वह प्रत्येक कार्य का संपादन करते समय जाग्रत रहे, ताकि किसी प्रकार की हिंसा सम्भव न हो । अहिंसा - महाव्रत के सम्यक् पालन के लिए पाँच भावनाओं का विधान है - 1. ईर्यासमिति - चलते-फिरते अथवा बैठते-उठते समय सावधानी रखना, 2. वचन समितिहिंसक अथवा किसी के मन को दुःखाने वाले वचन नहीं बोलना, 3. मन-समिति मन में हिंसक - विचारों को स्थान नहीं देना, 4. एषणा समिति - अदीन होकर ऐसा निर्दोष आहार प्राप्त करने का प्रयास करना, जिसमें श्रमण के लिए कोई हिंसा न की गई हो, 5. निक्षेपणासमिति - साधु - जीवन के पात्रादि उपकरणों को सावधानीपूर्वक प्रमार्जन करके उपयोग में ना अथवा उन्हें रखना और उठाना 126 368 अहिंसा - महाव्रत के अपवाद - सामान्यतया, अहिंसा - महाव्रत के सन्दर्भ में मूलआगमों में अधिक अपवादों का कथन नहीं है। मूल - आगमों में अहिंसाव्रत सम्बन्धी जो अपवाद हैं, उनमें त्रस जीवों की हिंसा के संदर्भ में कोई अपवाद नहीं है, केवल वनस्पति एवं जल आदि को परिस्थितिवश छूने अथवा आवागमन की स्थिति में उनकी होने वाली हिंसा के अपवादों का उल्लेख है। यद्यपि निशीथचूर्णि आदि परवर्ती ग्रन्थों में मुनिसंघ या साध्वीसंघ के रक्षणार्थ सिंह आदि हिंसक - प्राणियों एवं दुराचारी मनुष्यों की हिंसा करने सम्बन्धी अपवादों का भी उल्लेख है । 27 वस्तुतः, परवर्ती - साहित्य में जिन अधिक अपवादों का उल्लेख है, उनके पीछे संघ (समुदाय) की रक्षा का प्रश्न जुड़ा हुआ है। इसी आधार पर धर्म-प्रभावना के निमित्त होने वाली जल, वनस्पति एवं पृथ्वी सम्बन्धी हिंसा को भी स्वीकृति प्रदान कर दी गई। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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