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श्रमण-धर्म
श्रमण-दीक्षा के लिए माता-पिता एवं परिवार के अन्य आश्रितजनों की अनुमति भी आवश्यक मानी गई है । 14
वैदिक - परम्परा में संन्यास के लिए आवश्यक योग्यताएँ
यद्यपि प्रारम्भिक वैदिक परम्परा में संन्यास का विशेष महत्व स्वीकार नहीं किया गया था और इसलिए जैन और बौद्ध परम्पराओं के ठीक विपरीत यह माना गया था कि संन्यास केवल अन्धों, लूले लंगड़ों तथा नपुंसकों के लिए है, क्योंकि ये लोग वैदिक - कृत्यों के सम्पादन के अधिकारी नहीं हैं, लेकिन वेदान्त के परवर्ती सभी आचार्यों ने इस दृष्टिकोण का विरोध किया है। इतना ही नहीं, मेघातिथि आदि आचार्यों ने तो यह भी बताया है कि अन्धे, लूले, लंगड़े एवं नपुंसक आदि संन्यास के अयोग्य हैं, क्योंकि वे संन्यास के नियमों का पालन नहीं कर सकते । यति-धर्म-संग्रह के अनुसार, संन्यास - धर्म से च्युत व्यक्ति का पुत्र, असुन्दर नाखूनों एवं काले दाँतों वाला व्यक्ति, क्षय रोग से दुर्बल, लूला-लंगड़ा व्यक्ति संन्यास धारण नहीं कर सकता। इसी प्रकार वे लोग भी, जो अपराधी, पापी, व्रात्य होते हैं तथा सत्य, शौच, यज्ञ, व्रत, तप, दया, दान आदि के त्यागी होते हैं, उन्हें संन्यास ग्रहण करने की आज्ञा नहीं है । इस प्रकार, वैदिक परम्परा में भी संन्यास के संदर्भ में उन्हीं योग्यताओं
आवश्यक माना गया है, जो जैन और बौद्ध परम्पराओं में मान्य हैं। नारदपरिव्राजकोपनिषद् लगभग वे ही सभी योग्यताएँ आवश्यक मानी गई हैं, जिनकी चर्चा हम जैन और बौद्धपरम्पराओं के संदर्भ में कर चुके हैं । 16
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जैन श्रमणों के प्रकार
जैन - परम्परा में श्रमणों का वर्गीकरण उनके आचार- नियम तथा साधनात्मकयोग्यता के आधार पर किया गया है। आचरण के नियमों के आधार पर श्वेताम्बर - परम्परा में दो प्रकार के साधु माने गए हैं" - ( 1 ) जिनकल्पी और (2) स्थविरकल्पी | जिनकल्पी मुनि सामान्यतया नग्न एवं पाणिपात्र होते हैं तथा एकाकी विहार करते हैं, जबकि स्थविरकल्पी मुनि सवस्त्र, सपात्र एवं संघ में रहकर साधना करते हैं। स्थानांगसूत्र में साधनात्मक - योग्यता के आधार पर श्रमणों का वर्गीकरण इस प्रकार है - ( 1 ) पुलाक - जो श्रमण- साधना की दृष्टि से पूर्ण पवित्रता को प्राप्त नहीं हुए हैं। (2) बकुश - वे, जिन साधकों में थोड़ा कषायभाव एवं आसक्ति होती है। ( 3 ) कुशील - जो साधु भिक्षु जीवन के प्राथमिक नियमों का पालन करते हुए भी द्वितीयक नियमों का समुचित रूप से पालन नहीं करते हैं । ये सभी वास्तविक साधु-जीवन से निम्न श्रेणी के साधक हैं। (4) निर्ग्रन्थ - जिनकी मोह और कषाय की ग्रन्थियाँ क्षीण हो चुकी हैं। (5) स्नातक - जिनके समग्र घातीकर्म क्षय हो चुके हैं। ये दोनों उच्चकोटि के श्रमण हैं । 18
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