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भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
(3) नपुंसक, (4) क्लीव, (5) जड़ (मूर्ख), (6) असाध्य रोग से पीड़ित, (7) चोर, (8) राज-अपराधी, (9) उन्मत्त (पागल), (10) अंधा, (11) दास, (12) दुष्ट, (13) मूढ़, ज्ञानार्जन के अयोग्य, (14) ऋणी, (15) कैदी, (16) भयार्त (17) अपहरण करके लाया गया, (18) जुङ्गित – जाति, कर्म अथवा शरीर से दूषित, (19) गर्भवती स्त्री, (20) ऐसी स्त्री, जिसकी गोद में बच्चा दूध पीता हो। 10 यद्यपि स्थानांगसूत्र में श्रमणदीक्षा के अयोग्य व्यक्तियों में नपुंसक, असाध्यरोगी एवं भयार्त्त का ही उल्लेख है, तथापि टीकाकारों ने उपर्युक्त प्रकार के व्यक्तियों को श्रमण-दीक्षा के अयोग्य माना है। इतना ही नहीं, परवर्ती टीकाकारों ने उसमें जाति को भी आधार बनाने का प्रयास किया है। जुङ्गित शब्द की व्याख्या में मातंग, मछुआ, बसोड़, दर्जी, रंगरेज आदि जातियों के लिए भी श्रमण-दीक्षा वर्जित बताई गई।" यद्यपि कुछ परवर्ती आचार्यों ने इनमें से कुछ जातियों को श्रमण संस्था में प्रवेश देना स्वीकार किया है और वर्तमान परम्परा में भीरंगरेज, दर्जी आदि जातियों के व्यक्तियों को श्रमण संस्था में प्रवेश दिया जाता है, फिर भी यह सत्य है कि मध्यवर्ती युग में कुछ जातियाँ श्रमण-दीक्षा के लिए वर्जित मानी गई थीं । संभवतः, ऐसा ब्राह्मण-परम्परा के प्रभाव के कारण हुआ हो, ताकि श्रमण संस्था को लागों में होने वाली टीका-टिप्पणी से बचाया जा सके। ‘धर्म संग्रह के अनुसार, श्रमण-दीक्षा ग्रहण करने वाले में निम्न योग्यताएँ होनी चाहिए - (1) आर्य देश समुत्पन्न, (2) शुद्धजातिकुलान्वित, (3) क्षीणप्रायाशुभकर्मा, (4) निर्मलबुद्धि, (5) विज्ञातसंसारनैर्गुण्य, (6) विरक्त, (7) मंदकषाय, (8) अल्पहास्यादि (9) कृतज्ञ , (10) विनीत, (11) राजसम्मत, (12) अद्रोही, (13) सुन्दर, गठित एवं पूर्ण, (14) श्रद्धावान्, (15) स्थिर-विचार और (16) स्व-इच्छा से दीक्षा के लिए तत्पर।12
प्रवचनसारोद्धार आदि अन्य ग्रन्थों में भी श्रमण-दीक्षा के लिए उपर्युक्त विचारों का समर्थन मिलता है।
बौद्ध-परम्परा में श्रमण-जीवन के लिए आवश्यक योग्यताएँ-बौद्धपरम्परा में भिक्षुसंघ में प्रवेश पाने के लिए यद्यपि जाति को बाधक नहीं माना गया है, तथापि उसने कुछ व्यक्तियों को भिक्षुसंघ में प्रवेश देने के अयोग्य माना है, जैसे-हिंसक, चोर, सैनिक, राजकीय-सेवा में नियुक्त व्यक्ति, लंगड़े-लूले, अंधे, काने एवं गूंगे-बहरे व्यक्ति। असाध्य रोगियों का भी भिक्षुसंघ में प्रवेश वर्जित माना है। बौद्ध-परम्परा का यह भी नियम है कि 15 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को श्रामणेर-दीक्षा तथा 20 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति को उपसंपदा नहीं देनी चाहिए। 13 इस प्रकार, बौद्ध-परमपरामें भी श्रमण-दीक्षा की अयोग्यता के संदर्भ में लगभग वे ही विचार उपलब्ध हैं, जो जैन-परम्परा में हैं। दोनों ही परम्पराओं में
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