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श्रमण-धर्म
बौद्ध परम्परा में श्रमण - जीवन का तात्पर्य - जैन- परम्परा के समान बौद्धपरम्परा में भी श्रमण-जीवन का तात्पर्य समभाव की साधना ही है। जिस प्रकार जैनपरम्परा में श्रमण-3 - जीवन का अर्थ इच्छाओं एवं आसक्तियों से ऊपर उठना तथा पापवृत्तियों शमन माना गया है, उसी प्रकार बौद्ध-परम्परा में भी तृष्णा का परित्याग एवं पापों का शमन ही श्रमण - जीवन का हार्द है । बुद्ध कहते हैं कि जो व्रतहीन है तथा मिथ्याभाषी है, वह मुंडित होने मात्र से श्रमण नहीं होता। इच्छा और लोभ से भरा हुआ मनुष्य भला क्या श्रमण बनेगा ? जो छोटे-बड़े सभी पापों का शमन करता है, उसे पापों का शमनकर्ता होने के कारण ही श्रमण कहा जाता है।' बुद्ध के अनुसार, श्रमणजीवन का सार है- समस्त पापों का नहीं करना, कुशल कर्मों का सम्पादन करना एवं चित्त को शुद्ध रखना । इस प्रकार, बौद्ध दर्शन में भी श्रमणण - जीवन की साधना के दो पक्ष हैं- आंतरिक- रूप से वह चित्तशुद्धि है, तो बाह्यरूप से पापविरति ।
वैदिक - परम्परा में संन्यास - जीवन का तात्पर्य - वैदिक आचार-परम्परा में भी संन्यास - जीवन का तात्पर्य फलाकांक्षा का त्याग माना गया है। उसमें समस्त लौकिकएषणाओं से ऊपर उठना एवं सभी प्राणियों को अभय प्रदान करना ही संन्यास का हार्द है । वैदिक-परम्परा में साधक संन्यास ग्रहण करते समय यह प्रतिज्ञा करता है कि “मैं पुत्रैषणा ( कामवासना), वित्तैषणा (लोभ) और लोकैषणा (सम्मान की आकांक्षा) का परित्याग करता हूँ और सभी प्राणियों को अभय प्रदान करता हूँ ।
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इस प्रकार, सभी आचार - दर्शनों के अनुसार, श्रमण - जीवन का तात्पर्य मानसिकसमत्व अथवा रागद्वेष की वृत्तियों से ऊपर उठकर सामाजिक क्षेत्र में अहिंसक एवं निष्पाप जीवन जीना ही सिद्ध होता है ।
जैनधर्म में श्रमण - जीवन के लिए आवश्यक योग्यताएँ
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श्रमण का जीवन एक उच्चस्तरीय नैतिकता एवं आत्मसंयम का जीवन है। श्रमणसंस्था पवित्र बनी रहे, इसलिए श्रमण-संस्था में प्रविष्ट होने के लिए कुछ नियमों का होना आवश्यक माना गया है । सामान्यतया, जैन- विचारधारा श्रमण-संस्था में प्रवेश के द्वार बिना किसी वर्ण एवं जाति के भेद के सभी के लिए खुला रखती है। महावीर के समय में निम्नतम से निम्नतम जाति के लोगों को भी श्रमण-संस्था में प्रवेश दिया जाता था, यह बात उत्तराध्ययन सूत्र के हरिकेशीबल के अध्याय से स्पष्ट हो जाती है। यद्यपि प्राचीन काल में सभी जाति के लोगों को श्रमण संस्था में प्रवेश दिया जाता था, किन्तु कुछ लोगों को श्रमण-संस्था में प्रवेश के लिए अयोग्य मान लिया गया था । निम्न व्यक्ति श्रमण-संस्था में प्रवेश के लिए अयोग्य माने गए थे - ( 1 ) आठ वर्ष से कम उम्र का बालक, (2) अति-वृद्ध,
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