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________________ 342 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन के 'सत्य' की तुलना जैन-विचारणा के सत्यव्रत की अपेक्षा सम्यग्दृष्टित्व से करना अधिक उपयुक्त होगा। लेकिन, जहाँ तक सत्य का सम्बन्ध सच बोलने से है, वहाँ तक गांधीवाद और जैन-परम्परा-दोनों ही सत्य को अहिंसा के अधीन कर देते हैं। जैन-परम्परा में गृहस्थसाधक के लिए भी ऐसा सत्य सम्भाषण, जो अनिष्टकारक एवं अप्रिय हो, वर्ण्य माना गया है। उपासकदशांगसूत्र में कहा गया है, श्रमणोपासक को सत्य, तथ्य तथा सद्भूत होने पर भी ऐसे वचन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, जो अनिष्ट, प्रिय और अमनोज्ञ हों।127 गांधीजी भी जैन-परम्परा के इसी तथ्य की पुष्टि करते हुए लिखते हैं- सत्य न बोलना ही अच्छा है, यदि कोई उसको अहिंसक-तरीके से नहीं बोल सकता हो ।128 3. अस्तेय-गांधीवाद और जैन-दर्शन-दोनों ही में अस्तेय को एक व्रत के रूप में स्वीकारा गया है। इतना ही नहीं, गांधीवाद और जैन-दर्शन-दोनों में अस्तेय का अर्थ केवल इतना ही नहीं है कि चोरी नहीं करना। गांधीवाद और जैन-दर्शन इस सीमा से भी आगे गए और उन्होंने कहा कि वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना वस्तु को लेने का आचरण ही चोरी नहीं है, वरन् लेने की वृत्ति भी चोरी है। जैन-विचारणा के अनुसार, राजकीय (सामाजिक)-व्यवस्था के विरुद्ध कार्य करना, अप्रामाणिक माप-तौल का व्यवहार और अनैतिक सम्मिश्रण चोरी है। गाँधीजी ने अनावश्यक वस्तुओं के संग्रह को भी चोरी माना है। उनके अपने शब्दों में, जिन वस्तु की हमें जरूरत नहीं है, उसे जिसके अधिकार में वह हो, उसके पास से उसकी आज्ञा लेकर भी लेना चोरी है। 129 ____4. ब्रह्मचर्य - गांधीवाद की दृष्टि में स्वपत्नीसन्तोष भी ब्रह्मचर्य ही है, क्योंकि गह और गृहस्थाश्रम काम-वासना को सीमित करने का प्रयास है, वह संयम के लिए है और इसलिए ब्रह्मचर्य है, लेकिन इससे भी आगे बढ़कर जैन-दर्शन के समान गांधीवाद भी गृहस्थ जीवन में पूर्ण ब्रह्मचर्य के पालन की सम्भावना को स्वीकार करता है और उस पर जोर भी देता है। गांधीजी का जीवन स्वयं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस प्रकार, गांधीवाद और जैन-दर्शन में ब्रह्मचर्य के विषय में पर्याप्त साम्य है। इतना ही नहीं, वैदिक-परम्परासे आगे बढ़कर गांधी और जैन-दर्शन मानते हैं कि स्त्री को भी ब्रह्मचर्य-पालन का पुरुष के समान ही अधिकार प्राप्त है। गाँधीजी की दृष्टि में ब्रह्मचर्य का अर्थ है-मन, वचन और काया से समस्त इन्द्रियों का संयम। 130 गांधीजी ब्रह्मचर्य को मात्र स्त्री-पुरुष सम्बन्ध तक सीमित नहीं मानते, वरन् उसे अधिक व्यापक बनाते हैं। 5. अपरिग्रह-गृहस्थ-जीवन की मर्यादाओं को लेकर गांधीवाद में अपरिग्रह का व्रत ट्रस्टी - शिप' (न्यास-सिद्धान्त) के रूप में विकसित हुआ, जबकि जैन-दर्शन में परिग्रह-परिमाण-व्रत के रूप में। गांधीवाद में अपरिग्रह की वृत्ति का अर्थ है-अपनी जरूरत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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