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________________ गृहस्थ-धर्म 341 __ 1. अहिंसा - यद्यपि जैन-विचारकों ने अहिंसा का काफी अधिक गहराई तक विचार किया है, फिर भी जैन-दर्शन में अहिंसा के निषेधात्मक-पहलू का ही अधिक विकास हुआ है। जैन-अहिंसा मात्र हिंसा से बचने के लिए ही थी। उसमें वह जीवन्त सामाजिक-प्रेरणा नहीं थी, जो एक गृहस्थ-उपासक के लिए हिंसापूर्ण कठिन सामाजिकपरिस्थितियों में सम्बल बन सके। गांधीवादी-दर्शन में सत्याग्रह के द्वारा अहिंसा का सामाजिक-जीवन में जो प्रयोग हुआ, वह निश्चित ही मौलिक है। गाँधीवादी-अहिंसा की महत्ता इस बात में नहीं है कि प्राणियों की रक्षा किस प्रकार की जाए, वरन् इस बात में है कि समाज में व्याप्त अन्याय का प्रतिकार अहिंसा के द्वारा कैसे किया जा सकता है। गांधीवाद में अहिंसा अन्याय के प्रतिकार के एक साधन के रूप में सामने आई। गांधीजी ने अहिंसा को मानव जाति के नियम के रूप में देखा-उनके अपने शब्दों में अहिंसा हमारी (मानव) जाति का नियम है, जैसे कि हिंसा पशुओं का नियम है।22 । जैन-दर्शन के समान ही गांधीवाद में भी अहिंसा को व्यापक अर्थों में ग्रहण किया जाता है। गांधीजी लिखते हैं, कुविचार मात्र हिंसा है। उतावली (जल्दबाजी) हिंसा है। मिथ्याभाषण हिंसा है। द्वेष हिंसा है। किसी का बुरा चाहना हिंसा है। जगत् के लिए जो आवश्यक वस्तु है, उस पर कब्जा रखनाभी हिंसा है।123 अहिंसा के बिना सत्य का साक्षात्कार असम्भव है, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह भी अहिंसा के अर्थ में हैं।124 ___ गांधीवाद के अनुसार, सामाजिक-क्षेत्र में अहिंसा का आधार दूसरों के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानने में है, राजनीतिक-क्षेत्र में अहिंसा का आधार नागरिकों का परस्पर विश्वास और स्नेह है और आर्थिक-क्षेत्र में अहिंसा का आधार सह-उत्पादन और सम-वितरण है ।125 गांधीवाद में अहिंसा के आदर्श का विकास जीओ और जीने दो' के सिद्धान्त से भी आगे गया है। उसमें अहिंसा का सिद्धान्त जिलाने के लिए जीओ' बन गया है। 2.सत्य- यद्यपि गांधीवाद और जैन-दर्शन-दोनों ही सत्य की उपासना पर जोर देते हैं, दोनों के लिए सत्य ही भगवान है, फिर भी जैनदर्शन का सत्य भगवान, भगवती अहिंसा के ऊपर प्रतिष्ठित नहीं हो सका। जैनागमों में सर्वत्र अहिंसा सत्य के ऊपर प्रतिष्ठित है, सत्य अहिंसा के लिए है, लेकिन गांधीदर्शन में, सत्य अहिंसा के ऊपर प्रतिष्ठित है, उसमें सत्य का स्थान पहला है, अहिंसा का दूसरा। गांधीवाद में सत्य साध्य है और अहिंसा साधन, यद्यपि दोनों में अभेद है। गांधीजी के शब्दों में, सत्य की खोज मेरे जीवन की प्रधान प्रवृत्ति रही है, इसमें मुझे अहिंसा मिली और मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि इन दोनों में अभेद है, सत्य और अहिंसा एक दूसरे में ऐसे घुले-मिले हैं कि इनका अलग-अलग करना मुश्किल है। 125 गांधीवाद में सत्य मात्र सम्भाषण या लेखन तक सीमित नहीं, वरन् वह एक दृष्टि है। गांधीवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003608
Book TitleBharatiya Achar Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2010
Total Pages568
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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